ये फूल - कविता - मनोरंजन भारती

चाँद की चाँदनी को तुम,
अपने आग़ोश में रखती हो,
सुरज की पहली किरण संग,
समेटे पंखुड़ियाँ खोलती हो।
लेकीन एक कसक हमेशा रहेगा,
जी भर बातें कर ना सका कभी।

जहाँ रहो हर रोज़ खिलो,
अपनी ख़ुशबू बिखेरों, 
एक अफ़सोस रहेगा मुझे,
तेरी ख़ुशबू से महक ना सका कभी।

अब तो बस यादें है,
धुँधली सी तस्वीर है,
जहाँ भी हो मुस्कुराता रहे,
सदियों खिलता रहे ये फुल।

मनोरंजन भारती - भागलपुर (बिहार)

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