अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़ती : 22 22 22 22
जिस-जिस पे यह जग हँसता है,
सचमुच वो आगे बढ़ता है।
अपनी दुनिया में जो खोया,
वो झंडा ऊँचा करता है।
सोच समझ के अपनी धुन में,
नदियों सा कल-कल बहता है।
मस्ती मन में, आशा मन में,
पर्वत-पर्वत ख़ुद चढ़ता है।
जुट जाए न पलट के देंखे,
मंज़िल का मिलता रस्ता है।
नागेंद्र नाथ गुप्ता - मुंबई (महाराष्ट्र)