जिस-जिस पे यह जग हँसता है - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता

अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़ती :  22  22  22  22
  
जिस-जिस पे यह जग हँसता है,
सचमुच वो आगे बढ़ता है।

अपनी दुनिया में जो खोया,
वो झंडा ऊँचा करता है।

सोच समझ के अपनी धुन में,
नदियों सा कल-कल बहता है।

मस्ती मन में, आशा मन में,
पर्वत-पर्वत ख़ुद चढ़ता है। 

जुट जाए न पलट के देंखे,
मंज़िल का मिलता रस्ता है।

नागेंद्र नाथ गुप्ता - मुंबई (महाराष्ट्र)

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