ग़ुस्सा है या प्यार आपका,
चुप क्यों है इज़हार आपका।
बहुत दिनों से उलझाए है,
अनजाना व्यवहार आपका।
रहता है दिल की आँखों में,
भोला सा रुख़सार आपका।
कर लेते हैं ऐसे ही हम,
जब चाहें दीदारआपका।
अजी आप भी यही कीजिए,
मानेंगे उपकार आपका।
हमने माना सदा हृदय से,
अपना सा संसार आपका।
है 'अंचल' के अहसासों में,
प्यार सदा उपहार आपका।
ममता शर्मा 'अंचल' - अलवर (राजस्थान)