काश! हर शख़्स अदब सीख जाए - ग़ज़ल - श्याम निर्मोही

अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
तक़ती : 212  212  212  2

काश! हर शख़्स अदब सीख जाए,
नया ख़ून, जीने का ढब सीख जाए।

किसी दिन लाओ बच्चों को मेरे शहर,
वो भी ज़िंदगी का मतलब सीख जाए।

तहज़ीब-ए-क़िस्से सुने बुज़ुर्गों से हमने,
उम्र के साथ-साथ वो अब सीख जाए।

फ़िज़ाओं में नफ़रतें क्यों घुल रही है,
नई नस्लें इसका हल अब सीख जाए।

कोई तरकीब ऐसी निकालों शहरवालों,
इंसानियत का मज़हब सब सीख जाए।

उन्मादी भीड़ से बचके चल ए 'निर्मोही',
न जाने मज़हबी बातें तू कब सीख जाए।

श्याम निर्मोही - बीकानेर (राजस्थान)

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