संदेश
प्रकृति की सुंदरता - कविता - पारो शैवलिनी
यौवन की रोशनी में तेरे मन का दर्पण विश्वास जताया है मेरे एहसास पर। अगर सजा दे, अपने रंगों को मेरे भावनाओं की तुलिका तेरे चेहरे के कै…
क़ामयाबी - कहानी - अंकुर सिंह
ठाकुर वंशीलाल हीरापुर गाँव के बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, साथ में क्षेत्र के कई गावों में ठाकुर साहब की सामाजिक और राजनीतिक हैसियत भी …
अश्रु भी बनता जा रहा पानी - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
जीवन की इस भागमभाग में, संवेदनाएं बन चुकी निर्जीव कहानी। अपने अपनों से ही विमुख हुए, अश्रु भी बनता जा रहा पानी। स्वार्थ के हैं सब …
आरज़ू - ग़ज़ल - विनोद निराश
ज़िंदगी यूँ ही चलती रहे, आरज़ू यूँ ही पलती रहे। नाम तेरा ही लेकर बस, साँसें मेरी ये चलती रहे। रूठ गए जो तुम कभी, शायद कमी खलती रहे। तु…
खूबसूरती - कविता - तेज देवांगन
खूबसूरती उस बेवक़्त फूलो की तरह है, जो कभी कली हुआ करती थी। मधुवन के बागों में मिला करती थी, भोरे जिस पर मंडराते, तितलियाँ गाया करती थ…
ईश्वर का धन्यवाद - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
आइए! ईश्वर का धन्यवाद करते हैं, अपने अंदर बैठे ईश्वर को नमन करते हैं। ईश्वर ने हमें वो सब दिया जो हमारी ज़रूरत है, पर हमनें वो नहीं क…
नव उमंग नवरस भरते हैं - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
हम सतरंगी अरुणाभ पटल जग, नित स्वागत अभिनंदन करते हैं। द्रुतगति विकास नीलाभ पथिक बन हम नव उमंग नवरस भरते हैं। नित …
प्यार देना ही है तो - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
अगर तुम्हें प्यार देना ही है तो क्यों नहीं- आम का बौर बन किसी मानव में व्याप्त बिच्छू के विष को दूर कर राहत की साँस दो। अगर प्यार देन…
काँटों भरी राह - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
काँटों भरी राह मुझे चलने दो। सदियों से बंधी पाँव बेड़ियाँ। तोड़ बेड़ी मशाल प्रव्जलित करने दो।। मुझे काँटों भरी राह चलने दो। हवा रुख बदलत…
डूबती सभ्यता - कविता - अभिषेक अजनबी
कट रहे वृक्ष पंक्षी किधर जाएँगे। आसमाँ से ज़मी पर उतर आएँगे। अब अनारों से छिलके हटाओ नहीं, दाने दाने निकल कर बिखर जाएँगे। संस्कृति का ह…
वह थका हारा - कविता - महेश "अनजाना"
जीवन के संघर्ष से लड़ लड़ कर थका हारा सा मायूस होकर वह अकेले में सोचता रहा। कैसे लड़ी जाए ये लड़ाई। रात भर जागता रहा। आँखों में नींद…
बड़ा भाई - कविता - प्रवीन "पथिक"
बहुतों से मिला प्यार मुझे, खुशियाँ भी मिली हर बार मुझे। खाई साथ जीने की कसमें, मानने को; सब तैयार मुझे। एक आया तूफाँ मेरे जीवन पे,…
गुनाह तो नहीं है - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
बूंदों का बरसना गुनाह तो नहीं है, गुलों का महकना गुनाह तो नहीं है। आसमाँ में सितारों का चमकना गुनाह तो नहीं है, शबनम आफ़ताब से क्यों न…
शारदे वन्दना - पंचचामर छंद - अभिनव मिश्र "अदम्य"
सुमातु ज्ञान दीजिये, दयालु देवि शारदे! मिटाय अंधकार को, प्रकाश को उबार दे!! जला सुदीप ज्ञान का, सुकंठ हंसवाहिनी! स्वभाव माधुरी भरा, रह…
बिन पानी के धरती सूनी - गीत - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
हमें जिलाए रखता पानी, है जीवन आधार। बिन पानी के धरती सूनी, सूना यह संसार।। भोजनादि के लिए जरूरी, पानी का उपयोग। साफ-सफाई करते इससे, सि…
बधाई दे रहे - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
नये साल की सबको हम बधाई दे रहे। उजले-उजले दिन हों महकी-महकी रातें। और किसी रिंद की हों बहकी-बहकी बातें।। फूल अपने चेहरे की लुनाई दे रह…
बेटियों की पीड़ा - कविता - संजय राजभर "समित"
मैं डरती नही हूँ, हिंसक पशु - पक्षियों से भूत प्रेत से अथक परिश्रम से, हाँ मैं डरती हूँ, मानव लिबास में छिपे नरभक्षियों से, मैं कहाँ…
कुरीतियाँ - कविता - तेज देवांगन
कितनी वहम, कितनी कुरीतियाँ है। कुछ हमारे पुरखो से, तो कुछ हमने बनाई रीतियाँ है, है क्या ये आसमाँ तू, तुझमे छिपे कुछ राज तो कुछ मिथिया…
मैं क्या करूँ - गीत - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
टिप-टिप बरसा पानी, पानी ने ठण्ड बढाई। आग जली घर-घर में, तो ओढी किसी ने रजाई। ठण्ड है, इस कदर, तन कंपे थर-थर, अब तुम ही बताओ बहन, …
अब नहीं रुकना हैं - कविता - दिलीप कुमार शॉ
बहुत हो गया सबसे रिश्ते निभाना, अब खुद से रिश्ता निभाना हैं। बातें तो सबकी सुननी हैं पर अपनी बातों को नहीं भूलने देना हैं। अब नहीं रु…
तुम बिन नूतन वर्ष अधूरा - गीत - रमाकांत सोनी
तुम हृदय की हो दिवाली, जगमग रोशन हूँ मैं पूरा, तेरा प्रेम मेरी ज़िंदगी है, तुम बिन नूतन वर्ष अधूरा। तेरे संग सारी खुशियां है, घर आँग…
हे महावीर हनुमान दया करो - गीत - समुन्द्र सिंह पंवार
हे महावीर हनुमान, मुझपे दया करो हे कलयुग के भगवान, मुझपे दया करो। रोग - दोष तुम मेरे हर लेना बल - बुद्धि तुम मुझको देना सूं मैं मूर्ख…
काँटों की राह मुझे चलने दो - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
यह कविता प्रथम शिक्षिका सावित्रीबाई फुले को समर्पित है। मैं जान चुकी हूँ ज्ञान की ताकत, ज्ञान-तप में अब मुझे तपने दो। अंधकार मिटाने भा…
नव आशा के पंख - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नित नव आशा के पंख लगाकर, अम्बर स्वच्छन्द उड़ान भरो तुम। मन याद रखो नीलाभ सत्य पथ, संघर्ष सिद्ध अभियान रखो त…
पत्थरों का ढ़ेर - कविता - पारो शैवलिनी
मेरी आत्मा! धिक्कारती है मुझे। कहती है, क्यों सींचता है तू इस जमीन को। इससे तुझे कुछ नहीं मिलेगा। क्योंकि, यहाँ मात्र पत्थरों का ढ़ेर …