डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)
बिन पानी के धरती सूनी - गीत - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
गुरुवार, जनवरी 07, 2021
हमें जिलाए रखता पानी, है जीवन आधार।
बिन पानी के धरती सूनी, सूना यह संसार।।
भोजनादि के लिए जरूरी, पानी का उपयोग।
साफ-सफाई करते इससे, सिंचन अरु उद्योग।।
कम पानी से काम चलाएँ, जग में करें प्रचार।
बिन पानी के धरती सूनी..........।।
विविध जलाशय वाष्पित होकर, करता घन निर्माण।
वर्षा बनकर बरसे झम-झम, देता जग को त्राण।।
एक घूँट पानी के खातिर, मचता हाहाकार।
बिन पानी के धरती सूनी.......।।
तीन भाग पानी पृथ्वी में, थल मात्र एक भाग।
फिर भी पेय योग्य पानी की, जग में लगती आग।
मृदु पानी का स्रोत न्यून है, ज्यादातर हैं खार।
बिन पानी के धरती सूनी..........।।
व्यप्त प्रदूषण हैं दुनिया में, समझो रे इंसान।
जल स्रोत रोज सूख रहे हैं, इस पर दें अब ध्यान।
जल स्रोत बनी रहे सदा यह, स्वप्न करें साकार।
बिन पानी यह धरती सूनी........।।
कोहिनूर हीरे से ज्यादा, पानी का है मोल।
पानी व्यर्थ न करो बहाया, पानी है अनमोल।
बूंद-बूंद पानी संरक्षण, करें आज से यार।।
बिन पानी के धरती सूनी.........।।
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