आरज़ू - ग़ज़ल - विनोद निराश

ज़िंदगी यूँ ही चलती रहे,
आरज़ू  यूँ ही पलती रहे।

नाम तेरा ही लेकर बस,
साँसें मेरी ये चलती रहे।

रूठ गए जो तुम कभी,
शायद कमी खलती रहे।

तुझे देख-देख जीता रहूँ,
मुझपे तू यूंही मरती रहे।

तारिकी ये मिट जायेगी, 
शमा-ए-दिल जलती रहे।

मुझसे यूँ गाफिल न हो,
कही हाथ तू मलती रहे। 

ज़िंदगी निराश ही सही,
मोम सी पिघलती रहे।

विनोद निराश - देहरादून (उत्तराखंड)

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