अश्रु भी बनता जा रहा पानी - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

जीवन की  इस भागमभाग में,
संवेदनाएं बन चुकी निर्जीव कहानी।
अपने अपनों से ही विमुख हुए,
अश्रु भी बनता जा रहा पानी।

स्वार्थ  के  हैं सब  संगी साथी,
अपनी व्यथा अब रही किसे सुनानी।
दर्द-ए-दिल ढोने को सब मजबूर,
दमित हो रहीं, जो बातें रूहानी।

वो भी समय था, जब दादी नानी,
सबको सुनाया करती थी कहानी।
हर चेहरे पर खुशी झलका करती थी,
कभी ना होती थी कोई मनमानी।

एक का दर्द सबका दर्द होता था,
बुढ़ापे तक दिलों में रहती थी जवानी।
सब साथ बैठ, सुख-दुख बांटा करते,
ना होती थी मनवार की मनानी।

आज रिश्तों को नज़र लगी है,
हर इंसान झेल रहा है परेशानी।
प्रेम नफ़रत की भेंट चढ़ चुका,
अश्रु भी बनता जा रहा पानी।

कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)

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