नव उमंग नवरस भरते हैं - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

हम   सतरंगी अरुणाभ  पटल  जग,
नित    स्वागत  अभिनंदन करते  हैं।
द्रुतगति विकास नीलाभ पथिक बन
हम  नव  उमंग   नवरस   भरते   हैं। 

नित    नया  सृजन नवनीत  मनोहर,
शुभ    नवप्रभात   दर्शन   करते  हैं।
नित   परमारथ  नवप्रीत मुदित  हम,
हम   नवरंग  उमंगों    को  भरते  हैं।

हम  नीति  रीति  पथ धर्म  पारायण,
अनुराग   वतन  नित मन रखते  हैं।
सुलभ    सहिष्णु  समरसता मानस,
प्रतिकूल   दशा  नित हम  बढ़ते  हैं।

नवल    पादप  पल्लव  लता   लवंग,
निकुंज   उमंग    सुखमय  लगते  हैं।
सुष्मित प्रकृति पशु विहग सुशोभित, 
काँटों   से   सजे  फूल   खिलते   हैं।

अनुकूल सदा सुख दुख  में  हमसब,
ले  उमंग    साथ  सदा    बढ़ते   हैं।
प्रतिकूल    बने   आपद  हर  संकट,
शीत   गर्मी   वारिस सब   सहते  हैं।

नीति  रीति  पथ सद्प्रेम मुदित मन,
गीता   कुरान   ध्येय   गीत  बने  हैं।
धर्म    जाति   अनेक  भाषा  हजार,    
सर्वधर्म      मधुर     गीत  गाते   हैं।

हो मन   में   उमंग  साफल्य मनुज,
उत्साह    सबल   जीवन  कहते हैं।
बन  इन्द्रधनुष  सतरंग  उमंग  जग,
सहज   सरल  सुगम  राह बनते हैं।

भूले अतीत  हर   घाव जख्म  गम,
निर्माण  आश  पथ   बल भरते  हैं।
हो शिक्षा विकास चहुँ   अमन  चैन,
जनहित   मन  में  उमंग  रखते   हैं।

जीवन   ऊर्जा    नित  देता   उमंग,
संसाधक    सार्थवाह    बनते     हैं।
नव  जीवन  तरंग  सरित  धार बन,
नवजोश चाह   पथ  नित भरते  हैं। 

बन   संजीवनी  ध्येय  राह    उमंग,
धैर्यहीन  मनुज   साहस   भरते  हैं।
उत्साह  सदा  नित   दीन हीन  मन,
मुस्कान  सुखद  खुशियाँ भरते   हैं।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos