प्यार देना ही है तो - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

अगर तुम्हें
प्यार देना ही 
है तो क्यों
नहीं-
आम का बौर
बन किसी
मानव में व्याप्त
बिच्छू के विष को
दूर कर राहत की
साँस दो।
अगर प्यार देना ही है
तो क्यों नहीं
नीम की
निबौरी का
लेप बन काया
को सुख दो
जो चर्मरोग
से ग्रस्त
व्याकुल है आदमी।
तुम क्यों नहीं
बनती केवड़ा का
फूल जो
गुलदस्ता में
सुशोभित हो
सारे घर को
महकाता है।
तुम क्यों नहीं
प्रकृति की तरह
निःस्वार्थ वन
मेरे मन मस्तिष्क में
छा जाती।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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