बूंदों का बरसना गुनाह तो नहीं है,
गुलों का महकना गुनाह तो नहीं है।
आसमाँ में सितारों का चमकना गुनाह तो नहीं है,
शबनम आफ़ताब से क्यों न मिले
किसी को चाहना गुनाह तो नहीं है।
मोहब्बतों की रुत आना गुनाह तो नहीं है,
किसी का किसी पर दिल आना गुनाह तो नहीं है।
भंवरों का फूलों पर मंडराना गुनाह तो नहीं है,
नज़र से नज़र मिलाना गुनाह तो नहीं है।
सर्द जनवरी में अरमान-ए-गुल खिलना गुनाह तो नहीं है,
दिल के जज़्बात बेताब होना गुनाह तो नहीं है।
दिल से दिल तक ग़ज़ल उठना गुनाह तो नहीं है,
प्यार का प्यार में मचल उठना गुनाह तो नहीं है।
अतुल पाठक "धैर्य" - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)