काँटों भरी राह - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"

काँटों भरी राह मुझे चलने दो।
सदियों से बंधी पाँव बेड़ियाँ। 
तोड़ बेड़ी मशाल प्रव्जलित करने दो।।

मुझे काँटों भरी राह चलने दो।
हवा रुख बदलती रुपहली किरणे।
चुन सुगन्ध पुष्पों की दल की।
मदमस्त चहुँ ओर बिखरने दो।।

मुझे काँटों भरी राह चलने दो।
सुख दुख का संगम है गहरा।
जाने कब आये जीवन सबेरा।
उठकर मुझे धरा पर संभलने दो।।

काटों भरी राह मुझे चलने दो।
अंगारों भरी राह अनन्त घनेरी।
तप कर खरा सोना सी देहरी।
कर्म योगी सा नित पाठ पढाती।
बीज वृक्ष का दर्पण सा बनने दो।।

मुझे काटों भरी राह चलने दो।
दिन रात जीना मरना सिखाती।।
परिपाटी सहज सृष्टि क्षितिज में।
नही भेद भाव समुन्दर तल में।
अचल अविरल सा बहने दो।

मुझे काँटों भरी राह चलने दो।
हिमगिरि को पिघल पिघल  कर।
समदर्शी भाव ह्रदय तल भरने दो
अद्भुत स्वेत सी छटा बिखेरने दो।।

अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी" - कानपुर नगर (उत्तर प्रदेश)

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