संदेश
क्या मेरे भी दिन फिरेंगे? - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
प्रश्न अभी भी हैं अनुत्तरित क्या उनके उत्तर मिलेंगे? प्रिय, सच-सच अबकी कहना क्या मेरे भी दिन फिरेंगे? मैं अकेला सोचता हूँ रात-दिन बस ब…
दर्पण - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
यह दर्पण यूँ तो सारे राज़ जानता है, इसीलिए तो इसे सारा जहान मानता है। फ़ितरत क्या इंसान की न पूछो ऐ हुज़ूर! एक यही है जो उसे बख़ूबी पहचा…
फ़र्क़ है - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा
फ़र्क़ है श्रीराम की जयकार करने में, और अपने तात की आज्ञा शिरोधार्य करने में, और सबके हित के कार्य करने में, फ़र्क़ है। फ़र्क़ है भरत को राम…
स्त्रीत्व - कविता - संजय राजभर 'समित'
जो पुरुष तृप्ति के बाद करवट लेकर नहीं सोता बल्कि वह अतृप्ता को आलिंगन में भर लेता है वह वासना नहीं बल्कि प्रेम करता है वह स्त्रीत…
कोई काग़ज़ कैसे सब वृत्तांत कहेगा - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
कोई काग़ज़ कैसे सब वृत्तांत कहेगा, अन्तर के छंदों को पूरा कैसे छुएगा। एक सीमा है अभिव्यक्ति की, कागज की सीमित शक्ति की। बहुत कुछ मुख क्…
योग रूपी शरीर की आत्मा है संगीत - लेख - घनश्याम तिवारी
यूँ ही नहीं हमारा देश भारत प्राचीन काल से ही सम्पूर्ण मानवजाति का मागदर्शन एवं दिशा निर्देश करने वाला राष्ट्र माना जाता रहा है। इसका ज…
मौन भी अभिव्यंजना है - कविता - मयंक मिश्र
एक आदमी चुप है शांत पेड़ के पत्तों को देखता दूसरी ओर से हवा बहती हैं पत्ते हिले, पेड़ हिले पूरी दुनिया हिलती है, इसी बीच एक पक्षिय…
आत्मगत सौंदर्य - आलेख - कृपी जोशी
हालिया दिनों में यूपी दसवीं बोर्ड का रिजल्ट जारी किया गया था जिसमें प्राची निगम ने राज्यस्तरीय टॉपर सूची में प्रथम स्थान अंकित कर ढेरो…
ख़ुशियाँ बाँटते चलो - कविता - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'
ग़म तो सभी देते हैं, तुम ख़ुशियाँ बाँटते चलो। जिन्हें सबने दुत्कारा हो, तुम उन्हें पुचकारते चलो। जो बंचित हैं जो शोषित हैं, तुम उन्हें अ…
चिर जलो जगत में लघु दीप - कविता - राघवेंद्र सिंह
चिर जलो जगत में लघु दीप, ले नवल रुधिर का द्रुत प्रवाह। जग उठे विश्व का तृण-तृण यह, दो शून्य श्वास को नवल राह। तन में शैशव का रुदन काल,…
यमुना - आलेख - बिंदेश कुमार झा
सदियों से यमुना और कारखानों के बीच के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। शायद वैश्वीकरण ने यमुना के उपकारों को भुला दिया है। यमुना को इस बात से…
यह राष्ट्र माटी पर मर मिटने वालों का है - कविता - मयंक द्विवेदी
यह केवल एक राष्ट्र नहीं ना समझौते का ख़ाका है इसके कण-कण में युगों-युगों की बलिदानों की गाथा है। यह केवल एक भू-खण्ड नहीं ना स्वार्थपरक …
ग्रीष्म ऋतु - कविता - सुनीता प्रशांत
आकाश हो गया चुप धरा ने धरा मौन मन हुआ कुछ उदास ये मौसम आया कौन हवा हो रही ऊष्ण भास्कर भी तमतमाया घने वृक्षों की डालों पर खग ढूँढ़ते छाय…
पिता आप भगवान - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
आनंदित कुल पूत पिता पा, किया समर्पित जान सदा है। पिता त्याग सुख शान्ति ज़िंदगी, पूरण सुत अरमान लगा है। लौकिक झंझावात सहनकर, पिता सदा चु…
इंतज़ार - गीत - दीपक कुमार
बड़ी मुद्दत पे आए हो, ज़रा दीदार करने दो। ठहरो ज़रा कुछ पल, नज़र दो चार करने दो। कुछ दिन जो तुम ठहरो यहाँ, बातें पुरानी कर लें हम। हम …
क्या वह दोषी है? - लघुकथा - डॉ॰ सुनीता श्रीवास्तव
“अब जाकर घर आ रही हैं…!! तुम्हारे कारण माॅं चल बसी, एक भी फ़ोन नहीं उठाया तुमने?”- उत्तम (राशि का पति) भरी भीड़ में सबके सामने राशि पर …
कर्म-पथ पे चलना है तुझे - कविता - सागर 'नवोदित'
पथ नहीं अंजान वो, जिस पर चलना है तुझे, भरकर एक विश्वास नया, हर पल बढ़ना है तुझे। बना तलवार कलम को, पहन कवच ज्ञान का, फैला जो अंधकार यह…
पतंग की डोर - कविता - तेज नारायण राय
बचपन में पतंग उड़ाते जब कट जाती थी पतंग की डोर और जा गिरती थी गाँव की सीमा से दूर किसी पेड़ की फुनगी पर तब पतंग के पीछे दोस्तों …
सूरत में सीरत नहीं मिलती - कविता - निर्मल कुमार गुप्ता
सच है, सूरत में सीरत नहीं मिलती। सूरत कुछ और नज़र आती है, सीरत कुछ और नज़र आती है। बनावटी चेहरों की पहचान झलक जाती है। कुछ सूरत से सुन्द…
कॉलेज के दोस्त - कविता - अभिषेक शुक्ल
कॉलेज में वफ़ादार यार का मिल जाना ठीक-ठीक वैसा ही है! मरुस्थल में किसी प्यासे पथिक को पानी उपलब्ध हो जाने जैसा! ज़मीं नापते-नापते दम घु…
मानवता बेहाल - कविता - ममता शर्मा 'अंचल'
घर के पीछे आम हो, और द्वार पर नीम, एक वैद्य बन जाएगा, दूजा बने हकीम। पीपल की ममता मिले, औ बरगद की छाँव, सपने आएँ सगुन के, सुख से सोए ग…
तापमान - कविता - डॉ॰ सिराज
धरती जल रही है, गर्मी हदें पार कर रही हैं। मनुष्य ख़ुद को बचाने के उपाय तो ढूँढ़ लिया है, लेकिन प्रकृति को बचाने का विचार विलुप्त है। क…
मँझधार फँसी नैया - गीत - उमेश यादव
मँझधार फँसी नैया, उद्धार करा देना। जीवन की कश्ती को, प्रभु पार लगा देना॥ सुख-दुःख ही जीवन है, मन को समझाना है। संघर्ष भरा बीहड़ वन, …
संकटों के साधकों - कविता - मयंक द्विवेदी
हे संकटों के साधकों अब इन कंटकों को चाह लो समय दे रहा चुनौती जब कुंद को नयी धार दो वार पर अब वार हो और प्रयत्नों की बौछार हो गा रही ह…
ज्ञान दीन - घनाक्षरी छंद - महेश कुमार हरियाणवी
उसे घर से निकाला घर जिसने संभाला। पढ़े-लिखे बगुलों का काला किरदार है। माया जिन पे चढ़ादी देह अपनी लुटादी। बोलियाँ वे बोलते की पैसा सरदार…
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