चिर जलो जगत में लघु दीप - कविता - राघवेंद्र सिंह

चिर जलो जगत में लघु दीप - कविता - राघवेंद्र सिंह | Hindi Prerak Kavita - Chir Jalo Jagat Mein Laghu Deep. Hindi Motivational Poem. मोटिवेशनल कविता
चिर जलो जगत में लघु दीप,
ले नवल रुधिर का द्रुत प्रवाह।
जग उठे विश्व का तृण-तृण यह,
दो शून्य श्वास को नवल राह।

तन में शैशव का रुदन काल,
मन में यौवन की अनुभूति।
स्वच्छंद अधर हों हीरक सम,
तुम स्वयं चिरंतन की विभूति।

ले अमर प्रणय स्वर की झंकृति,
चिर परिचित नेह आवृत्त रहे।
निज शस्य-श्यामला रश्मि सहित,
नयनों में अनादित वृत्त रहे।

हो आत्म समर्पण स्पंदन,
तुम बनो स्वयं ही प्रणय द्वीप।
चिर जलो जगत में लघु दीप,
चिर जलो जगत में लघु दीप।

हो धैर्य तुम्हारा पथ साथी,
हो त्याग चित्त की मृदु छाया।
हो दिग-दिगंत में चेतन स्वर,
विघ्नों से कटी रहे काया।

तुम अतल, अमर, अज्ञात, मौन,
बन जलो निरंतर रश्मि स्रोत।
निज त्याग व्यथा के द्रवित मेघ, 
नित द्युतिमान हो ओत-प्रोत।

हो अरुण तुम्हारा नित मस्तक,
शृंगार तेल हो, घृत बाती।
नित नवल दिवस बन सुकुमार,
हर लाना रजत रति साथी।

हर निशा, नवल, नीरव, नवीन,
बन जाओ कोई स्वर्ण सीप।
चिर जलो जगत में लघु दीप,
चिर जलो जगत में लघु दीप।


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