हे संकटों के साधकों
अब इन कंटकों को चाह लो
समय दे रहा चुनौती जब
कुंद को नयी धार दो
वार पर अब वार हो
और प्रयत्नों की बौछार हो
गा रही हो दुन्दुभि
जब चुनौतियों का राग हो
साहस भरो उरों की चौखटों
और बाजुओं में जान दो
फूँक दो ये शंख फिर से
युग नया आग़ाज़ हो
ये रगों में दौड़ता
ख़ून का तेज़ाब हो
काट दो या तोड़ दो
इस प्रमाद जाल को
अब विघ्न का उल्लास हो
और विघ्न ही आल्हाद हो
उठो समय लिख रहा
इतिहास का अध्याय ये
लिखों समय के भाल पर
संघर्षो का पर्याय में
अब विजय अन्तर्नाद हो
और हार अन्तर्नाद हो
हे संकटों के साधकों
अब इन कंटकों को चाह लो
मयंक द्विवेदी - गलियाकोट, डुंगरपुर (राजस्थान)