हारिल की लकड़ी (गीत संग्रह) - पुस्तक समीक्षा - विमल कुमार प्रभाकर

वरिष्ठ साहित्यकार जनकवि दीनानाथ सुमित्र एक कुशल काव्य रचनाकार हैं । इनमें साहित्यिक , सामाजिक , सांस्कृतिक एवं प्रगतिशील दृष्टि देखनेे को मिलती है । समकालीन साहित्य में लोकप्रिय रचनाकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं । लगभग 50 वर्षों से अनवरत उत्कृष्ट साहित्य सृजन में लगे हैं ।

दीनानाथ सुमित्र लोक जनमानस के संघर्ष से जुड़े हुए हैं और उनकी पीड़ा को अपनी पीड़ा समझना इनके व्यक्तित्व की विशेषता है । कठिन से कठिन वक्त का पूरे साहस एवं उत्साह से उसका सामना करते हैं । इनके गीतों से संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है ।
जनकवि दीनानाथ सुमित्र का पूरा जीवन साहित्य को समर्पित है , अभी भी अबाध गति से साहित्य साधना में लगे हैं । आपके बहुमुखी व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सभी लोग परिचित हैं ।

सत्यम भारती ने ठीक ही कहा है -  " स्वभाव से अक्खड़ , बातों से फक्कड़ , चेहरे पर तेज , हाथों में क्रान्तिकारी कलम , चेहरे पर सामाजिक चश्मा , सर पर भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की टोपी , बांहों में आशा का झोला , पैरों में परिवार का चप्पल - ऐसे हैं दीनानाथ सुमित्र "
दीनानाथ सुमित्र प्रगतिशील विचारधारा के जनवादी कवि हैं । इनकी रचनाओं से व्यक्ति सीधे जुड़ता है , ये बड़ी रुचि से पढ़े एवं गाये जाने वाले कवि हैं । दीनानाथ सुमित्र को संगीत की बहुत गहरी समझ है । इनके एक - एक गीत की सृजन - प्रक्रिया एक विशिष्ट रूप में दिखायी देती है ।

' हारिल की लकड़ी ' के रचनाकार की संवेदना परिधि में सम्पूर्ण भारतीय समाज मौजूद है । मानवीय संवेदना तथा भारतीय संस्कृति की बहुत गहरी समझ आपको है । कवि नें अपने गीतों के माध्यम से देश प्रेम एवं प्रकृति प्रेम को सहज रूप से जनमानस के सामने प्रस्तुत किया है ।

समाज का दर्द इनके गीतों में सहज रूप से उभरकर आया है , इसीलिए दीनानाथ सुमित्र के गीत जनमानस को बहुत गहरायी तक प्रभावित करते हैं । ये सहजता ही इनके गीतों की ताकत है । ' हारिल की लकड़ी ' समाजनिष्ठ गीत संग्रह है , इसमें प्रेम , मानवता एवं बन्धुत्व भाव का समावेश है, और कवि इस प्रेम का मूल्य नही चाहता वो बिना स्वार्थ के सबसे प्रेम करता है ।

इनके गीतों में निहित नैतिक आदर्श , मानवता , बन्धुत्व भाव एवं जीवन मूल्यों ने वर्तमान सदी को नवीन दिशा प्रदान है ।

हवा और पानी ने कब है भेद किया
इस मिट्टी ने भी है सबको स्नेह दिया
लहू - लहू का रंग है  एक समान
इसे पूज लो यह ऊँचा पर्वत
हर मजहब से ऊँचा है इंसान

दीनानाथ सुमित्र के गीत जनमानस से जुड़ते हैं और लगातार अन्तर्विरोधों से टकराते हैं , शोषक तंत्र पर गहरी चोट करते हैं तथा शोषित , वंचितों के अधिकार की बात करते हैं । परिवेश के प्रति जागरुकता और सामाजिक यथार्थ का काफी गहराबोघ इनके गीतों में दिखाई देता है । 
कवि की इन पंक्तियों में समाजोन्मुखी चेतना झलक रही है । प्रेमभाव से सभी लोग अपनी - अपनी उन्नति करें तभी देश की समृद्धि होगी । समाज में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति सभी के प्रति सहानुभूति का भाव रखे ।
कवि जीवन के प्रत्येक पल को भरपूर जीने की बात कर रहा है ।

कभी न हारे हम
हर पल की जीत करें
प्रीत बिना सब सूना
चल के प्रीत करें
दुश्मन कोई दिखे नही
हम मीत करें

समाज में व्याप्त ईर्ष्या - द्वेष छोड़कर आपस में बन्धुत्व भाव से प्रीत करें , क्योंकि बिना प्रेम के समरसता नही आयेगी । दीनानाथ सुमित्र सच्ची लोक संवेदना एवं निष्ठा से जीवन जीते हैं । इनकी गहरी सामाजिक प्रतिबद्धता इन पंंक्तियों में दिखाई देती है । भविष्य निर्माण की दृष्टि इनके गीतों में मिलती है ।

जनकवि दीनानाथ सुमित्र के गीतों में सभी मनोभावों का अद्भुत मधुरतम चित्रण पाया जाता है ।

पर मन प्राण बसे झरने में
नहीं आस्था है मरने में
क्या जाता प्रयास करने में
अब न ढलेगी जीत, हार में
मैं भी अजर - अमर बनने को
कई युगों से हूँ कतार में

समाज में बदलाव की अदम्य आशा और उन्नति के लिए दृढ़ नजर आते हैं । कवि सृजनशील जीवन की बात कर रहा है । इनके गीतों में जीवन जीनें की एवं कुछ करने की अद्भुत जिजीविषा मौजूद है ।
कवि की आशावादी दृष्टि समाज को नयी दिशा एवं गति देती है । इनके गीतों के साथ एक नवीन अनुभूति हर - पल प्राप्त होती है ।

मंजिल तेरी दूर अगर है तेज चलो
अगर अँधेरा है तो सूरज बनो,जलो
स्वप्न सुहाना हर - पल सुन्दर देखो तो
जाति - धर्म से ऊपर उठ कर देखो तो
झाँक के अपने उर के अंदर देखो तो

इन पंक्तियों से जीवन में संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है । कवि बुराइयों को समाप्त करके जाति - धर्म से ऊपर सोचने - समझने को प्रेरित करते हैं । कवि ने युवाओं की नवीन ऊर्जा को प्रोत्साहित किया है , हर परिस्थिति में आगे बढ़ते रहने की कोशिश करनी चाहिए
कवि ने कहा है -

धारा तेज रखो जीवन में
वरना जम जायेगी काई

अपने को निरन्तर विकसित करने के लिए कठिन परिश्रम की जरुरत है । अगर जीवन में ठहराव हो गया तो सृजनात्मकता नष्ट हो जायेगी , क्योंकि ठहरा हुआ जल गंदा हो जाता है । सतत् गतिशील जल में निर्मलता हमेशा बनी रहती है ।

जीवन में आलस्य प्रवेश कर गया तो व्यक्ति उन्नति नही कर सकता है उसके अन्दर छिपी मौलिक प्रतिभा समाप्त हो जायेगी , इसलिए जीवन कर्मशील होना चाहिए ।
नैसर्गिक मानवीय भावों का अत्यंत माधुर्य रूप दिखायी दे रहा है इन पंक्तियों में -

सुमन नव - नव खिल रहे हैं
हवा सुरभित बह रही है
मुझे भी खिलना अभी है
कली सबसे कह रही है
नाचती है सुरभि छम - छम
आ गया है गीत का मौसम
मत करो तुम यह नयन नम

दीनानाथ सुमित्र कमाल का लिखते हैं । प्रकृति का अद्भुत जीवंत दृश्य प्रस्तुत किया है । हमारी प्रकृति में जीवंतता है हमेशा नयापन देखने को मिलता है । प्रकृति का नवीन सौन्दर्य जीवन को गति देता है । 
कवि ने हाशिये के समाज को वाणी दी है । शोषित वंचितों के हक की बात हमेशा करते हैं । समाज को बदलने का निरन्तर प्रयास करते हैं ।

दीनानाथ सुमित्र की काव्य भाषा अत्यन्त सरल , सहज एवं माधुर्य है , इनकी भाषा शैली पाठक को नयी ताजगी देती है । जनकवि अद्भुत शब्दशिल्पी हैं , इनके गीतों में नाद सौन्दर्य उपस्थिति है । शब्दों का प्रवाह गजब का है । प्रांजल खड़ी बोली में लोकभाषा के शब्द घुले मिले हैं , इसी कारण ये गीत ज्यादा खूबसूरत लगते हैं । सरल शब्दावली होने के कारण पाठक रचना के साथ तारतम्य बना लेता है । 


' हारिल की लकड़ी ' की भाषा शैली सरल एवं पठनीय है । भाषा काफी असरदार एवं विचार प्रधान है इन सभी दृष्टियों से ये गीत संग्रह अत्यन्त मूल्यवान है ।

विमल कुमार प्रभाकर - जनपद, फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos