दर्पण - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'

दर्पण - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना' | Hindi Kavita - Darpan - Seema Sharma | दर्पण पर कविता, Hindi Poem About Mirror
यह दर्पण यूँ तो सारे राज़ जानता है,
इसीलिए तो इसे सारा जहान मानता है।
फ़ितरत क्या इंसान की न पूछो ऐ हुज़ूर!
एक यही है जो उसे बख़ूबी पहचानता है॥

दर्पण के यूँ तो न जाने कितने फ़साने हैं,
बयाँ हुए हैं इस पर जाने कितने तराने हैं।
क़ाबिलियत का अंदाज़ा क्या तुम्हें मालूम,
इसके क़िस्से दुनिया में सदियों पुराने हैं॥

जीवन की दहलीज़ से रू-ब-रू करवाता है,
ख़ुद से ख़ुद की तुम्हारी पहचान करवाता है।
यही रखता है हिसाब महीने दिन साल का,
वक्त की अहमियत क्या ये हमें सिखाता है॥

है जो सत्य यह उस सत्य को ही दिखाता है,
कपटी मनुज यह प्रतिबिम्ब देख नहीं पाता है।
अपने किए हर एक-एक कर्म का अक्स जो,
उसे उस वक्त नज़र दर्पण में जो आ जाता है॥

सीमा शर्मा 'तमन्ना' - नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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