मौन भी अभिव्यंजना है - कविता - मयंक मिश्र

मौन भी अभिव्यंजना है - कविता - मयंक मिश्र | Hindi Kavita - Maun Bhi Abhivynjana Hai - Mayank Mishra | मौन पर कविता
एक आदमी चुप है 
शांत पेड़ के पत्तों को देखता 
दूसरी ओर से हवा बहती हैं 
पत्ते हिले, पेड़ हिले 
पूरी दुनिया हिलती है,
इसी बीच एक पक्षियों का दल 
उसी टावर के पास जा रहा 
जहाँ उनके दोस्तों के लापता होने कि 
ख़बरें आई,
आदमी अभी भी,
हज़ारों प्लास्टिक से केले के छिलके को खोजती 
वहाँ की गायों को देखता है,
दो आदमी और है 
जो आपस में गर्मी की बात करते हैं 
तबतक, तीसरा उधर से पाँच सितारा वाला 
एसी और कूलर लिए आ जाता 
दूसरा कहता रोज़ पचास बाल्टी पानी डालता हूँ छत पर
और मुझे दिल्ली याद आती है 
इतनी गर्मी में भी 
ठंड पड़े प्रेमी को देखता हूँ 
जो वर्तमान में प्रेम लिए 
भविष्य की चिंता किए सिर खुजला रहा... 
एक्स पर मेलोडी की बहार है 
इन सब के बीच, धूमिल नहीं 
मैं ख़ुद से पूछता हूँ, 
मैं कौन हूँ और 
फिर भी, मैं मौन हूँ 
क्यूँकि 
मौन भी अभिव्यंजना है 
जो वर्तमान में 
वाचालता की प्रतिनिधि बनी हुई हैं!


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