उसे घर से निकाला
घर जिसने संभाला।
पढ़े-लिखे बगुलों का
काला किरदार है।
माया जिन पे चढ़ादी
देह अपनी लुटादी।
बोलियाँ वे बोलते की
पैसा सरदार है।
ममता से मिला हल
दुवाओं में सदा बल
आँचल को भूल कर
ढूँढ़ते दुलार है।
ज्ञानी ज्ञान दीन हुए
भाव अर्थहीन हुए।
ब्याज ही चुका दो बेटों
मूल का उधार है।