ग्रीष्म ऋतु - कविता - सुनीता प्रशांत

ग्रीष्म ऋतु - कविता - सुनीता प्रशांत | Hindi Kavita - Grishm Ritu - Sunita Prasant. Hindi Poem On Summer Season. ग्रीष्म ऋतु पर कविता
आकाश हो गया चुप
धरा ने धरा मौन
मन हुआ कुछ उदास
ये मौसम आया कौन
हवा हो रही ऊष्ण
भास्कर भी तमतमाया
घने वृक्षों की डालों पर
खग ढूँढ़ते छाया
हलदर हुआ निष्काम
देखे गगन की ओर
जैसे चंदा की आस में
बैठा हो चकोर
सरिता भी रीत गई
सागर लगाए आस
निशा संकुचित होकर
छोड़ रही उश्वास
तरुवर सर उठाए
झेल रहे कड़ी धूप
दिवस अचंभित सा खड़ा
निहारे सूखता कूप
सृष्टि हो चकित सी
खड़ी अपनी ही धुन
ग्रीष्मागमन में सुन रही
सावन की रुनझुन

सुनीता प्रशांत - उज्जैन (मध्य प्रदेश)

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