सुनीता प्रशांत - उज्जैन (मध्य प्रदेश)
ग्रीष्म ऋतु - कविता - सुनीता प्रशांत
सोमवार, जून 17, 2024
आकाश हो गया चुप
धरा ने धरा मौन
मन हुआ कुछ उदास
ये मौसम आया कौन
हवा हो रही ऊष्ण
भास्कर भी तमतमाया
घने वृक्षों की डालों पर
खग ढूँढ़ते छाया
हलदर हुआ निष्काम
देखे गगन की ओर
जैसे चंदा की आस में
बैठा हो चकोर
सरिता भी रीत गई
सागर लगाए आस
निशा संकुचित होकर
छोड़ रही उश्वास
तरुवर सर उठाए
झेल रहे कड़ी धूप
दिवस अचंभित सा खड़ा
निहारे सूखता कूप
सृष्टि हो चकित सी
खड़ी अपनी ही धुन
ग्रीष्मागमन में सुन रही
सावन की रुनझुन
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