घनश्याम तिवारी - कोरबा (छत्तीसगढ़)
योग रूपी शरीर की आत्मा है संगीत - लेख - घनश्याम तिवारी
शनिवार, जून 22, 2024
यूँ ही नहीं हमारा देश भारत प्राचीन काल से ही सम्पूर्ण मानवजाति का मागदर्शन एवं दिशा निर्देश करने वाला राष्ट्र माना जाता रहा है। इसका ज्ञान विज्ञान, इसकी संस्कृति और ललित कलाएँ विश्व पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ने में सदा ही सफल रही है। हमारे देश के प्राचीन ज्ञान विज्ञान ने आधुनिक युग की नवीन अनुसंधान प्रणालियों को एक सशक्त आधार और वैज्ञानिक सोच प्रदान किया है।
भारतीय योग तथा दर्शन ने जहां समूचे विश्व को आधुनिक व्यस्ततम दिनचर्या और अनियमित खान पान की आदतों के फल स्वरूप प्रदूषित हुए स्वास्थ एवं शारीरिक व्याधियों को दूर करने के लिए प्राणायाम तथा एक से बढ़कर एक योग आसन का प्रयोग बताया है वहीं दूसरी ओर भारतीय संगीत ने अपनी ध्वनियों के विशेष स्वर संनिवेशों के माध्यम से अति व्यस्तता एवं काम की अधिकता एवम कठिनता के फलस्वरूप उत्पन्न मानसिक तनाव, निराशा और उत्साह में कमी की समस्या को जड़ से समाप्त करने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाई है।
भारतीय योग और संगीत की इन्हीं विशेषताओं के कारण जन जन में जागृति उत्पन्न करने और विश्व स्तर पर स्थापित करने के लिए प्रतिवर्ष 21 जून का दिन अंतराष्ट्रीय योग दिवस एवम विश्व संगीत दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज जिस दौर में हम जी रहे हैं उसमें आपसी प्रतिस्पर्धा और अधिक से अधिक अंक प्राप्त करने की होड़ ने विद्यार्थियों की जीवन शैली को इस क़दर प्रभावित किया है कि उनकी दिनचर्या, खानपान और सोचने समझने की शक्ति बुरी तरह से प्रभावित हुई है जिसने उनमें कई तरह की शारीरिक एवम मानसिक बीमारियों का प्रसार कर दिया है। कई बार तो इन स्वास्थगत परेशानियों का स्तर इतना बढ़ जाता है कि विधार्थी आत्मघात जैसी स्थितियों को भी अपनाने को मजबूर हो जाते हैं।
नई शिक्षा नीति में कई ऐसे प्रावधान दिए गए हैं कि विधार्थी अपनी पसंद का कोई भी विषय चुनकर पढ़ाई कर सकता है चाहे वह किसी भी फैकल्टी का हो लेकिन सिर्फ़ इतना ही उनके व्यवस्थित और प्रभावी अध्यन के लिए पर्याप्त नहीं होगा। कठिन शारीरीक और मानसिक श्रम के पश्चात उन्हें पुनः तरोताज़ा होकर अभ्यास के लिए तैयार होने हेतु योग एवं संगीत जैसे विषयों को पाठयक्रम में अनिवार्य रूप से सम्मिलित करना होगा जिसके माध्यम से उनकी शारीरीक थकान आसानी से दूर हो जाए और वे एक बार फिर से रीचार्ज हो जाएँ अपने आगामी पठन पाठन के लिए। योग और संगीत दोनों की ही अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका है वर्तमान परिवेश में सशक्त, सफल एवम व्यवस्थित ज्ञानार्जन के लिए। विद्यार्थीयों को एक नवीन चेतना उत्साह और अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक रहने और विपरीत परिस्थितियों में भी हताश और निराश होने से यदि कोई बचा सकता है तो वह है योग और संगीत। इसलिए यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि "योग रूपी शरीर की आत्मा है संगीत"।
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