संदेश
इक छोटा सा पत्थर हूँ - कविता - मोहम्मद रब्बानी
मैं विडंबनाओं की गली से निकला, इक छोटा सा पत्थर हूँ। मैं धोखों में धोखा खाया, इक पथ के कंकड़ सा हूँ। मैं दोस्तों से बिछड़ा हुआ, इक अक…
गोवर्धन पूजा - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
गौ माता ममता हृदय तुल्य, अपर मातु सन्तान समझ लो। धवल स्वच्छ निर्मल मधुर सरस, गाय दूध वरदान समझ लो। गौ धन सर्वोत्तम जगत पूज्य, पोषक क…
दीप - कविता - इन्द्र प्रसाद
दीप से दीप तुम भी जलाते रहो, दीप से दीप हम भी जलाते रहें। मन में अँधेरे जो ढेर सारा भरा, तुम भगाते रहो हम भगाते रहें॥ है तमस का असर, छ…
दीप जलें - गीत - सुशील शर्मा
दीप जलें उनके मन में, जो व्यथित व्यतीत बेचारे हैं। दीप जलें उनके मन में, जहाँ लाचारी में जीते हैं। दीप जलें उनके मन में, जहाँ होंठों क…
लौट आओ माँ - कविता - राजेश 'राज'
शून्य में टिक गईं सजल उदास आँखें, दिल में उठी एक वेदनापूर्ण टीस, घर जाने की उत्सुकता भी थक सी गई है, क्योंकि– जिन्हें था हर पल बेटे का…
कुछ तो हमारा भी हक़ है कन्हैया पे - गीत - श्याम सुन्दर अग्रवाल
कुछ तो हमारा भी हक़ है कन्हैया पे, फिर तू काहे मन ही मन जले राधा। चाहे तू कान्हा की बने पटरानी, हम भी तो दासी बन सकतीं हैं राधा। याद कर…
हिंदी भाषा के समक्ष चुनौतियाँ - आलेख - डॉ॰ ममता मेहता
हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा होने के साथ जनभाषा भी है। यही वह भाषा है जिसने कश्मीर से कन्याकुमारी तक संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँध र…
देश की माटी है चंदन - कविता - इन्द्र प्रसाद
देश की माटी है चंदन। करें हम बार बार वंदन॥ १ प्रकृति की अनुपम सुषमा यहाँ, और षड् ऋतुएँ मिलती कहाँ। यहीं हिमधारे पर्वतराज, तपस्वी …
संतोष से बड़ा सुख नहीं - कविता - गणेश भारद्वाज
संतोषी जन बहुत सुखी हैं, स्वार्थ की दुनियादारी में। झूम उठा जो एक ही गुल पर, क्या करना उसको क्यारी में? सीख लिया थोड़े में जिसने, …
नीलकंठ दर्शन विहग - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
खल कामी हिंसक दनुज, हो विनाश नवरात्र। महादेव विषपान से, नीलकंठ शिव गात्र॥ विजयादशमी मांगलिक, रखें जयन्ती शीश। नीलकंठ दर्शन विहग, प्…
शिव स्वरूप श्री नीलकंठ - गीत - उमेश यादव
दिव्य मनोहर सुन्दर नभचर, शिव दर्शन मनभावन है। शिव स्वरूप श्री नीलकंठ का, शुभदर्शन अति पावन है॥ रावण वध से पूर्व राम ने, शिवशंकर आह्व…
मर्म-स्मृतियाँ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
आँखों मे डर का ख़ौफ़, दिल मे भयानक मंज़र, मन मे अप्रत्याशित आशंका, और जीवन से मोह भंग– निविड़ता से उत्पन्न दुःख की ऐसी सूक्ष्म अनुभ…
मृत्यु : एक अखण्ड सत्य - कविता - सार्थक सिद्धू
पाषाण बन चुकें मेरे इस हृदय को एक दिन अनुभूति हुई इक गहरी, क्या अर्थ होता है मृत्यु का? ये जानने की इक प्रबल इच्छा सी ठहरी, देखा ज…
जो पग कहें तो बढ़ चलो - कविता - राघवेंद्र सिंह
जो पग कहें तो बढ़ चलो, स्वयं से ही यूँ लड़ चलो। शिखर का अंत है कहीं, जो दिख रहा तो चढ़ चलो। दृगों में तुंग कोर हो, हृदय सदा विभोर हो। …
नमन - मनहरण घनाक्षरी छंद - महेश कुमार हरियाणवी
खगोलीय जहान हो, या गूँजता विमान हो, अपने तिरंगे का तो, अलग मक़ाम है। तकनीक का है जोर, चमके हैं चारों ओर, पैर धरती पे म्हारे, हाथ में लग…
कोई ख़ुशबू, कोई साया, याद आया रात भर - ग़ज़ल - रोहित सैनी
अरकान: फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती: 2122 2122 2122 212 कोई ख़ुशबू, कोई साया, याद आया रात भर, जाने किसकी, याद ने हमको …
वन्दन करें सब उस अगोचर का - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
वन्दन करें सब उस अगोचर का, दुख में सदा रहे उस सहचर का। सहज सुख की अभिलाषा में, दुख प्रकट उपेक्षा की भाषा में। कैसे दर्शन दिन में निशाच…
इमारतें - कविता - ऊर्मि शर्मा
शहर की ऊँची इमारतें ख़ून पसीना पिए खड़ी है इसी गाँव के ग़रीब मज़दूर का पल में घुड़क दिया फुटपाथ से उसे उखाड़ आशियाना चार-हाथ का उ…
पदचिह्न - कविता - संजय राजभर 'समित'
आया था चला जाऊँगा खाली हाथ आया था पर कोशिश है खाली हाथ न जाऊँ कुछ पद चिन्हों को छोड़ जाऊँ और वही पद चिन्ह छोड़ पाते हैं जो मानव सभ्यता…
वंदित विरह - कविता - मेहा अनमोल दुबे
चंद छन्द कहकर,ओझल कौन? विरह वंदित, क्युँ करता मौन? पीडा़ हो गई भाव-विहिन? भाव-विहिन हृदय से, गड़ता कविता कौन? शब्दों में ढलता ही नह…
अक्टूबर है जी जान लगा दो - नज़्म - प्रशान्त 'अरहत'
ये क्या है मौसम? बहाना कैसा? कभी तुम गर्मी कभी तुम सर्दी बता रहे हो! या काम से जी चुरा रहे हो? तुम लक्ष्य ठानो जो एक मन में तो उसको प…
सीख - कविता - नाथ गोरखपुरी
आँसू जब अंगार बनेगा, तन का मन का हार बनेगा। अंतस् में सुनापन साधे, समझो कि संसार बनेगा। जब जब पीड़ा गहरी होगी, ख़ुशियाँ रुक के ठहरी हों…
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