जो पग कहें तो बढ़ चलो - कविता - राघवेंद्र सिंह
रविवार, अक्टूबर 22, 2023
जो पग कहें तो बढ़ चलो,
स्वयं से ही यूँ लड़ चलो।
शिखर का अंत है कहीं,
जो दिख रहा तो चढ़ चलो।
दृगों में तुंग कोर हो,
हृदय सदा विभोर हो।
करों में धैर्य की सदा,
वो आस्था की डोर हो।
हो ध्येय लक्ष्य पर अटल,
सदा ही वेग हो प्रबल।
न भय रहे यदा-कदा,
सदा विजय हो पथ सफल।
जो गिर गए कहीं यदि,
संभल सको तो बढ़ चलो।
शिखर का अंत है कहीं,
जो दिख रहा तो चढ़ चलो।
सदा ही रव में घोष हो,
निजत्व पे न रोष हो।
स्वयं का कर्म-पथ बनो,
न भेद हो, न दोष हो।
समर्थता को जान लो,
वो सिंधु सा उफान लो।
पड़ाव नव ही पथ गढ़ो,
हुई विजय यह मान लो।
स्वयं के मुख की काँति को,
बदल सको तो बढ़ चलो।
शिखर का अंत है कहीं,
जो दिख रहा तो चढ़ चलो।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर