सीख - कविता - नाथ गोरखपुरी

सीख - कविता - नाथ गोरखपुरी | Hindi Kavita - Seekh - Nath Gorakhpuri. Hindi Poem Seekh
आँसू जब अंगार बनेगा,
तन का मन का हार बनेगा।
अंतस् में सुनापन साधे,
समझो कि संसार बनेगा।

जब जब पीड़ा गहरी होगी,
ख़ुशियाँ रुक के ठहरी होंगी।
लाख सहे जब ठोकर पत्थर,
समझो पालनहार बनेगा।
अंतस् में सुनापन साधे,
समझो कि संसार बनेगा।

जग के मग का कहाँ ठिकाना,
आना जाना खोना पाना।
पर्वत छोड़ निकलती नदियाँ,
मौसम सदा बहार बनेगा।
अंतस् में सुनापन साधे,
समझो कि संसार बनेगा।

लालच इच्छा हसरत चाहत,
दौलत तृष्णा लोभ से राहत।
इंसा जब इनको त्यागेगा,
तब प्यारा घर बार बनेगा।
अंतस् में सुनापन साधे,
समझो कि संसार बनेगा।

लूट-लूट के लाख धरे हों,
महल अटारी लाख पड़े हों।
काया दूषित हो जाएगी,
घाटे का व्यापार बनेगा।
अंतस् में सुनापन साधे,
समझो कि संसार बनेगा।

अभी ख़ुदा से तेरी दूरी,
चाहे कोई हो मजबूरी।
अपने कर्म किए जा प्यारे,
कभी तो उसका यार बनेगा।
अंतस् में सुनापन साधे,
समझो कि संसार बनेगा।

हाथ पसारे माँग रहा है,
रात दिवस तू जाग रहा है।
सोच रहा कि पूरा होगा,
दो-दो लेकर चार बनेगा?
अंतस् में सुनापन साधे,
समझो कि संसार बनेगा।

मिट्टी-मिट्टी ही है पाई,
धूल मूल ही है सच्चाई।
कौन रहेगा अमर जगत में?
उमर कटी तो पगार बनेगा।
अंतस् में सुनापन साधे,
समझो कि संसार बनेगा।

नाथ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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