दीप जलें उनके मन में,
जो व्यथित व्यतीत बेचारे हैं।
दीप जलें उनके मन में,
जहाँ लाचारी में जीते हैं।
दीप जलें उनके मन में,
जहाँ होंठों को सब सीतें हैं।
दीप जलें उनके मन में,
जहाँ भूखी सिसकी रातें हैं।
दीप जलें उनके मन में,
जहाँ दर्द भरी सौग़ातें हैं।
दीप जलें उनके मन में,
जहाँ मजबूरी के मारे हैं।
दीप जलें उस कोने में,
जहाँ अबला सिसकी लेती है।
दीप जलें उस कोने में,
जहाँ संघर्षो की खेती है।
दीप जलें उस कोने में,
जहाँ बालक भूख से रोता है।
दीप जलें उस कोने में,
जहाँ बचपन प्लेटें धोता है।
दीप जलाना उस मन में,
जहाँ मन ही मन से हारें हैं।
दीप जलें उस आँगन में,
जहाँ मन पर तम का डेरा है।
दीप जलें उस आँगन में,
जहाँ गहन अशांति अँधेरा है।
दीप जलें उस आँगन में,
जहाँ क्रोधी कपट कुचालें हों।
दीप जलें उस आँगन में,
जहाँ कूटनीति भूचालें हों।
दीप जलाना उस घर में,
जहाँ दर्द भरे भुन्सारे हैं।
दीप जलें उनके मन में,
जहाँ श्रम की खेती होती है।
दीप जलें उनके मन में,
बीज जहाँ मेहनत बोती है।
दीप जलें उनके मन में,
जहाँ भूख संग बेकारी है।
दीप जलें उनके मन में
जहाँ दर्द संग बीमारी है।
ज्योत जलाना आँगन में,
जहाँ कलह क्लेश के धारे हैं।
दीप जलें उस आँगन में,
जहाँ अहंकार सिर चढ़ बोले।
दीप जलें उस आँगन में,
जहाँ गहन अशिक्षा मन डोले।
दीप जले उस मिट्टी पर,
जहाँ बलिदानों की हवा चले।
दीप जले उस मिट्टी पर,
जहाँ पर शहीद की चिता जले।
तमस मिटाना उस मन से,
जहाँ गहन गूढ़ अँधियारे हैं।
सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)