मृत्यु : एक अखण्ड सत्य - कविता - सार्थक सिद्धू

मृत्यु : एक अखण्ड सत्य - कविता - सार्थक सिद्धू | Hindi Kavita - Mrityu Ek Akhand Satya - Sarthak Siddhu | मृत्यु पर कविता, Hindi Poem On Death
पाषाण बन चुकें मेरे इस हृदय को 
एक दिन अनुभूति हुई इक गहरी, 
क्या अर्थ होता है मृत्यु का? 
ये जानने की इक प्रबल इच्छा सी ठहरी, 
देखा जब मैंने जलती, ज्वाला को
मणिकर्णिका के उस घाट पे आधी रात को
तब मानो हृदय को साक्षात्, मृत्यु का स्पर्श हुआ
ठुकरा नहीं सकता मानव, ना ठुकरा सकते देव और दानव, 
ये ऐसा अनंत कथ्य है, 
प्रत्येक जीव के जीवन का, मृत्यु ही तो अखण्ड सत्य है
देखो कैसे इक कण से शुरू हुआ था जीवन
और आज भी यह कैसे कण-कण बन गया
इस मुट्ठी भर भस्म को देखो ग़ौर से
जो कुछ देर पहले तक थी किसी का जीवन
और अब देखो ये जीवन कैसे क्षण भर में धूल बन गया
ठुकराया था अहंकार वश, कंश और रावण ने जिस कथ्य को
अंत में वह उनके जीवन का भी एक अटल, अखण्ड सत्य बन गया॥ 

सार्थक सिद्धू - अमरोहा (उत्तर प्रदेश)

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