सार्थक सिद्धू - अमरोहा (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु : एक अखण्ड सत्य - कविता - सार्थक सिद्धू
सोमवार, अक्तूबर 23, 2023
पाषाण बन चुकें मेरे इस हृदय को
एक दिन अनुभूति हुई इक गहरी,
क्या अर्थ होता है मृत्यु का?
ये जानने की इक प्रबल इच्छा सी ठहरी,
देखा जब मैंने जलती, ज्वाला को
मणिकर्णिका के उस घाट पे आधी रात को
तब मानो हृदय को साक्षात्, मृत्यु का स्पर्श हुआ
ठुकरा नहीं सकता मानव, ना ठुकरा सकते देव और दानव,
ये ऐसा अनंत कथ्य है,
प्रत्येक जीव के जीवन का, मृत्यु ही तो अखण्ड सत्य है
देखो कैसे इक कण से शुरू हुआ था जीवन
और आज भी यह कैसे कण-कण बन गया
इस मुट्ठी भर भस्म को देखो ग़ौर से
जो कुछ देर पहले तक थी किसी का जीवन
और अब देखो ये जीवन कैसे क्षण भर में धूल बन गया
ठुकराया था अहंकार वश, कंश और रावण ने जिस कथ्य को
अंत में वह उनके जीवन का भी एक अटल, अखण्ड सत्य बन गया॥
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर