ये क्या है मौसम?
बहाना कैसा?
कभी तुम गर्मी
कभी तुम सर्दी बता रहे हो!
या काम से जी चुरा रहे हो?
तुम लक्ष्य ठानो जो एक मन में
तो उसको पाने का हौसला हो।
सामना करो हर एक शय का
फिर वो चाहे कोई बला हो।
कभी तुम गर्मी
कभी तुम सर्दी बता रहे हो।
पढ़ो लगाकर के ध्यान अपना
इसके सिवा तो कुछ नहीं है।
अगर पढ़ाई
तो नौकरी है
तभी है इज़्ज़त
वगरना क्या है कुछ नहीं है,
संसार है एक झूठा सपना।
न जाने कितने हैं रोज़ आते
न जाने कितने ही जा रहे हैं।
मौसमों को दोष मत दो
हवाओं के रुख को बदल दो
है अक्टूबर का महीना साहब!
कमाल का है, कमाल कर दो।
जब ये आए तो हल्की सी सर्दी लाए
और गर्मी को लेके जाए
ये तथ्य तुमको बता रहे हैं।
मौसमों को दोष मत दो
पढ़ाई में ख़ुद को लगा दो
अक्टूबर है जी जान लगा दो॥
प्रशान्त 'अरहत' - शाहाबाद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)