लौट आओ माँ - कविता - राजेश 'राज'

लौट आओ माँ - कविता - राजेश 'राज' | Maa Kavita - Laut Aao Maa | Hindi Poem On Mother. माँ पर कविता
शून्य में टिक गईं सजल उदास आँखें,
दिल में उठी एक वेदनापूर्ण टीस,
घर जाने की उत्सुकता भी
थक सी गई है, क्योंकि–
जिन्हें था हर पल
बेटे का इंतज़ार,
वे आँखें ही अदृश्य हो गईं हैं। 

आपकी गोदी में लेटकर सोना,
छोटी-छोटी बातों की
शिकायत भरी पोटली
आपके समक्ष खोलना
फिर, हल्का महसूस करना
सबसे बेदखल सा हो गया हूँ।

माँ! मन बोझिल हो रहा है
रह-रह कर बेचैन भी,
काश असंभव संभव हो जाता।
तू आ जाती माँ
मेरी व्यथा सुन लेती
और सिर पर हाथ रख
फिर आशीष दे जाती
और मैं विजयी हो जाता।

देख माँ देख,
तेरा एक-एक शब्द
तेरी एक-एक हिदायत
मेरे ज़हन में ताज़ी है,
नहीं भूला हूँ कुछ भी
इतने समयांतराल के बाद भी
हो सके माँ तो,
एक पल को ही लौट आओ
अपने विशाल वक्ष से लगाकर
मुझे पुचकार जाओ माँ
लौट आओ माँ।

राजेश 'राज' - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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