खल कामी हिंसक दनुज, हो विनाश नवरात्र।
महादेव विषपान से, नीलकंठ शिव गात्र॥
विजयादशमी मांगलिक, रखें जयन्ती शीश।
नीलकंठ दर्शन विहग, प्रमुदित शिवा गिरीश॥
नीलकंठ दर्शन सुगम, यात्रा हो कैलाश।
सिद्धिदातृ वर दे जगत, राष्ट्र शत्रु कर नाश॥
नीलकंठ शिव शक्तिमय, दर्शन शुभ अभिराम।
तम रावण हर पाप मन, जीवन हो सुखधाम॥
आज बहुल रावण जगत, करो पाप संहार।
तभी सफल हो दशहरा, विजय पर्व उपहार॥
राम नाम सच एक है, विजय कीर्ति आधार।
भज ले मानव राम पद, हो भवसागर पार॥
आज पुनः पुतला दहन, रावण फिर तैयार।
बहुतों रावण देश में, कौन करे संहार॥
लोभ सिद्धि बस ध्येय बन, उसका हो संहार।
मन के रावण पर विजय, सत्य विजय संसार॥
रावण रूपी शत्रु बहु, भारत माँ बेहाल।
राष्ट्र तोड़ने में निरत, राष्ट्र द्रोह चांडाल॥
महादेव विषपान कर, किया जगत कल्याण।
नीलकंठ भज रे मनसि, शिव शंकर जगत्राण॥
मानवता रक्षा कठिन, खल कामी बहुलोक।
नवदुर्गा नवशक्ति का, आराधन हर शोक॥
मातृशक्ति आदर सतत, मंगलमय सब काम।
नीलकंठ दर्शन सुखद, शुभ यात्रा अविराम॥
देवासुर मानव सतत, आराधन शिव नाम।
भक्ति प्रीति शंकर भजो, हो जीवन अभिराम॥
विजय पर्व शुभ दशहरा, नवदुर्गा नवशक्ति।
नीलकंठ दर्शन विहग, देय पुण्य मन भक्ति॥
खल कामी हिंसक दनुज, हो विनाश नवरात्र।
महादेव विषपान से, नीलकंठ शिव गात्र॥
विजयादशमी मांगलिक, रखें जयन्ती शीश।
नीलकंठ दर्शन विहग, प्रमुदित शिवा गिरीश॥