कुछ तो हमारा भी हक़ है कन्हैया पे,
फिर तू काहे मन ही मन जले राधा।
चाहे तू कान्हा की बने पटरानी,
हम भी तो दासी बन सकतीं हैं राधा।
याद करो राधा वो कुंजगलिन में,
हम सबने कान्हा संग रास रचाई,
याद करो कान्हा की बंशी की धुन में,
हम सबने तन मन की सुध-बुध गँवाई,
माना कि मोहन की तू है बावरिया,
हम भी तो उनकी गुजरियाँ हैं राधा।
कुछ तो हमारा भी हक़ है कन्हैया पे।
क्या हुआ राधा-रानी जो तूने,
कान्हा को माखन खिला के रिझायो,
निर्धन ग्वालिन हैं फिर भी तो हमने,
छछिया भर छाछ पे नाच नचायो,
प्रेम में कौन बड़ा कौन छोटा?
माखन-छाछ बराबर हैं राधा।
कुछ तो हमारा भी हक़ है कन्हैया पे।
भूलो न पनघट पे राधा तुम्हारी,
चुपके से नटखट ने तोड़ी गागरिया,
तब कहां बच पाईं मटकी हमारी,
कान्हा ने उनपे भी मारी कंकरियाँ,
गीली हुई तो क्या! सारी तुम्हारी,
चूनर तो अपनी भी भीगीं है राधा।
कुछ तो हमारा भी हक़ है कन्हैया पे।
मइया यशोदा से करके शिकायत,
तुमने तो कान्हा को मार पड़ाई,
लेकिन बाबा, नंद को मनाकर,
हमने ही कान्हा की रस्सी छुड़ाई,
जो तू है मइया यशोदा की प्यारी,
हम भी तो नंद की दुलारी हैं राधा।
कुछ तो हमारा भी हक़ है कन्हैया पे।