हिंदी भाषा के समक्ष चुनौतियाँ - आलेख - डॉ॰ ममता मेहता

हिंदी भाषा के समक्ष चुनौतियाँ - आलेख - डॉ॰ ममता मेहता | Hindi Article About Hindi Language - Dr Mamta Mehta. Hindi language faces challenges
हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा होने के साथ जनभाषा भी है। यही वह भाषा है जिसने कश्मीर से कन्याकुमारी तक संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँध रखा है। किंतु आज जन की भाषा हिंदी के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं।

उसमें सबसे पहले है–
अंग्रेजी के प्रति मोह
हिंदी अत्यंत समृद्ध भाषा है पर इतनी स्मृद्धता के बाद भी बातचीत में इंग्लिश शब्दों के प्रयोग का मोह हम छोड़ नहीं पाते। बात-बात में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग हमारी मानसिक दरिद्रता, भाषीय ग़ुलामी और अपनी भाषा के प्रति उदासीनता का परिचायक है। राष्ट्र भाषा घोषित होने के बावजूद हिंदी को लेकर हम हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं और अंग्रेजी भाषा को ग़ुरूर के साथ उच्च स्तर पर पहुँचा रहे हैं।
अंग्रेजी के प्रति यह मोह ग़ुलाम मानसिकता का द्योतक है।

भाषा का विकृत होता रूप
इसके प्रभाव के फलस्वरूप भाषा का स्वरूप विकृत हो रहा है।व्यक्ति अभिव्यक्ति का मुख्य तत्व राष्ट्रभाषा और मातृभाषा थी वो ही उपेक्षित और नगण्य हो गई। विद्यार्थियों अधिकारियों के साथ सामान्य जन की सहज साधारण भाषा में भी अंग्रेजी शब्दों की भरमार हो गई है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति समझ ही नहीं पाता कि वो हिंदी बोल रहा है या अंग्रेजी। वह एक खिचड़ी, बिगड़ी, अशुद्ध और कामचलाऊ भाषा के दम पर सब कुछ पा लेना चाहता है। ये मानसिकता हिंदी भाषा के उपयोग और विकास को अवरूद्ध कर हमारी पहचान को मिटा रही है।

हिंदी हीनता का बोध
हिंदी भाषा के सामने सबसे बड़ी चुनौती मातृभाषा को हीन समझने वालों से ही है। लेखक श्री राम परिहार जी का कहना है, भाषा कोई भी बुरी नहीं होती विभिन्न भाषाओं का ज्ञान होना बहुत अच्छी बात है, कभी कभी आवश्यक भी। पर दिक्कत तब होती है जब अंग्रेजी हिंदी के सर पर सवार हो उसे हीनता का बोध कराती है। ग़लत-सलत हिंदी बोल कर भी व्यक्ति गौरवांवित महसूस करता है और सही विशुद्ध हिंदी हीनता के बोझ तले दबती जाती है। यही कारण है कि इतनी समृद्ध भाषा होने के बावजूद हमारी हालत कंगालों जैसी है।
अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई, अंग्रेजी से संबद्ध आधुनिकता का बोध और विदेशी संस्कृति के प्रति आकर्षण हिंदी भाषा के समक्ष विकट चुनौती है। अंग्रेजी के प्रति यह मोह रुझान और झुकाव न सिर्फ़ महानगरों बल्कि गाँवों और कस्बों तक भी फैल रहा है जिससे हिंदी की अस्मिता पर संकट मंडरा रहा है और उसका विकास बाधित हो रहा है।

डॉ॰ ममता मेहता - अमरावती (महाराष्ट्र)

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