संदेश
श्री शिव रुद्राष्टकम् - स्तोत्रम् - उमेश यादव
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥ हे ईश ईशान, हे व…
संबल - गीत - सुशील कुमार
नव ज्ञान रश्मि बिखराऊँ, निर्बल को सबल बनाऊँ। जो हार चुके हैं जग में, पथ भूल चुके हैं मग में। उत्साह जगा चिंगारी, अंतस की हर ॲंधियारी। …
जीवन यही है - कविता - सुनील कुमार महला
जब वो ज़िंदा थी, तो घर आँगन महकता था उसकी बातों से बहता था झरना घुलता था शहद आबोहवा में अब उसका सिंहासन छिन गया है दूर जा बैठी है कहीं…
मैं किताब हूँ - कविता - विनय कुमार विनायक
मैं किताब हूँ मुझे पढ़ लो, मैं वेद उपनिषद पुराण हूँ, मैं अतीत हूँ मैं वर्तमान हूँ, मैं भविष्य का सद्ज्ञान हूँ, मैं किताब हूँ मुझे पढ़ …
तुम उठो हिन्द के रणधीरों - कविता - राघवेंद्र सिंह
तुम उठो हिन्द के रणधीरों, रणभेरी का न सुनो राग। सामर्थ्य विजेता बनो स्वयं, क्रोधानल का तुम करो त्याग। यह नहीं हस्तिनापुर, चौसर, न इन्द…
आराध्य प्रभु हे शिव भोले - कविता - गणेश भारद्वाज
आराध्य प्रभु हे शिव भोले, जगती अंबर तुझ में डोले। मेरे मन में वास करो तुम, मेरे सारे पाप हरो तुम। तुम बिन जग में किसको ध्याऊँ, कण-कण म…
हर पल के अन्तराल में तुम हो - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
अलार्म की आवाज़ दे जाती है हर दिन मुट्ठीभर पल ख़र्चने को घड़ी की सुइयाँ उठा लेती हैं बही-खाता हर पल का हिसाब रखने को भाप बन उड़ जाते हैं …
मौन - कविता - ऊर्मि शर्मा
मौन से अधिक मुखर कौन भला हर-पल बोलता-सुनता भविष्य तय करता मौन कमज़ोर नहीं मौन शक्ति समेटे इशारों में मुखर वक़्त बुनता हुआ दुनियाँ समझें…
बरसे बादल - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
बरसे बादल क्रोध भरे, नश्वरता का बोध भरे। इतना पानी आँखों में, जाने कैसे रोध करे। कुछ तो सावन का असर, उस पे नयन मोद भरे। पार का स…
फूल और हम - कविता - वंदना यादव
हम - पूछ रहे है कलियों से कब ये तुमको खिलना है, बस कुछ पल की देरी है, अब किसी से हमको मिलना है। जल्दी उठो पंखुड़ियाँ खोलो, अब कुछ न त…
लो आ गया सावन - कविता - रमाकान्त चौधरी
लो आ गया सावन, खिल उठे उपवन, चहकी हरियाली। पेड़ों को मिला नवजीवन लो आ गया सावन। आग बरसाते तपते भास्कर, सिर पर तनी धूप की चादर। गर्म हवा…
हम चाँद को छूने आए हैं - कविता - अनूप अंबर
फिर चाँद को छूने आए हैं, हम चाँद को छूने आए हैं। फिर से नवीन जोश भर के, अडिग हौसलों को कर के, हमने हार न मानी लेकिन, हमने नव स्वप…
भाई से भाई बेगाना हो गया - ग़ज़ल - रज्जन राजा
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 212 भाई से भाई बेगाना हो गया, बंद आना और जाना हो गया। ख़ुद से ज़्यादा था यक़ीं जिस …
अपील - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
उसका अपील छल की स्याही से लिखा गया है जबकि मेरा अपील पीड़ा की आँसू से उसका अपील धूर्तता के गिनियों के साथ पेश किया जाता है मेरा अपील या…
माँ जैसा कोई नहीं - कविता - प्रिती दूबे
तुम सब कुछ कैसे जान लेती हो माँ? बच्चो के दुःख को कैसे पहचान लेती हो माँ? माँ बच्चो को सुलाकर ख़ुद नहीं सोती है, अपने हर शब्दो में दुआ…
दर्द - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
कुछ दर्द बयाँ हो न पाए, ज़ुबाँ ख़ामोश पर हम आँसुओं को रोक न पाए, हवाएँ वही फ़िज़ाएँ वही पर तेरे चाँद से चेहरे को हम देख न पाए, एक र…
सावन और माँ का आँगन - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
मुस्कान खिली ऋतु पावस मुख, आनंद मुदित मधु श्रावण है। फुलझड़ियाँ बरखा हर्षित मन, नीड भरा माँ का आँगन है। महके ख़ुशबू बरसात घड़ी, भारत …
हे शूरवीर - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
वज्र सा तुम प्रहार बनो, विघ्न हर्ता तलवार बनो। लक्ष्य को निहारो हर क्षण, चाहे रण लड़ना पड़े भीषण॥ भले काल विकराल विषम हो, कलह, वि…
सुबह - कविता - संजय राजभर 'समित'
सूरज का नियति समय पर उदय होना सुबह नहीं है यह एक प्राकृतिक चक्र है और कुछ नहीं, सुबह मानवतावादी होना और अच्छे संस्कारों का बीजारोपण…
फ़र्क़ - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
मायने रखता है- उलझे धागे को सुलझाने वाले का जीवन, कितना सुलझा है? मायने रखता है– उसके जीवन का अनवरत श्रम, किसके तन पर दिखता है? मायने …
बार-बार यह सावन आए - कविता - राजेश 'राज'
करें गगन में मेघ गर्जन, करे चपला घनघोर नर्तन। हुए पागल उन्मुक्त बादल, घुमड़ रहे ले जल ही जल। यह विराट दृश्य मन भाए, बार-बार यह सा…
स्थायित्व - कविता - श्याम नन्दन पाण्डेय
ब्रह्मांड का हर कण दूसरे कण को आकर्षित अथवा प्रतिकर्षित करता रहता है सतत… ताप, दाब और सम्बेदनाओं से प्रभावित टूटता-जुड़ता हुआ नए रूप अथ…
सावन में शिव अर्चना - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
सावन में शिव अर्चना सोम दिवस अति नेम। अवढर दानी चाहते शुद्ध सरल शुचि प्रेम॥ शुद्ध सरल शुचि प्रेम दूध घी चन्दन वारो। जप लो नमः शिवाय…
शंकर - कविता - हर्ष शर्मा
सूक्ष्म से सूक्ष्म शंकर, विशाल से विराट शंकर, आकार शंकर, साकार शंकर, विश्व में निरंकार शंकर, घुँघरू की झंकार है शंकर, शब्दो का ओ…
बरसा ऋतु मन भावन - मनहरण घनाक्षरी छंद - राहुल राज
बरसा की ऋतु मन भावन सुभावन है, तन मन डाले संग उठत उमंग हैं। हरियाली ख़ुशहाली लाई ऋतु मतवाली, ताली बजा बजा नाचे सब एक संग हैं। ख़ुश ह…
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