फ़र्क़ - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा

मायने रखता है-
उलझे धागे को सुलझाने वाले का जीवन,
कितना सुलझा है?
मायने रखता है–
उसके जीवन का अनवरत श्रम,
किसके तन पर दिखता है?
मायने रखता है-
पूँजी का अंधा बँटवारा,
किनकी जेबों में दिखता है?
मायने रखता है–
उसके तन का ढका होना,
पर किसका तन ढका है?
मायने रखता है–
कच्चे और पक्के मकानों का फ़र्क़,
पर किसके मकान पक्के हैं?
और
फ़र्क़ सिर्फ़ अमीरी-ग़रीबी का ही नहीं
फ़र्क़ अपमानित जीवन का भी है
फ़र्क़ असमान व्यवहारों का भी है
फ़र्क़ शिक्षा-दीक्षा का भी है
फ़र्क़ सोच का भी है
बेमायने नहीं है जीवन उसका।

डॉ॰ अबू होरैरा - हैदराबाद (तेलंगाना)

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