अपील - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति

उसका अपील
छल की स्याही से लिखा गया है
जबकि मेरा अपील पीड़ा की आँसू से

उसका अपील
धूर्तता के गिनियों के साथ
पेश किया जाता है
मेरा अपील याचना में डूबे दुःख के साथ

उसका अपील
सत्ता के आदेश की तरह पढ़ा जाता है
जबकि मेरा अपील हिक़ारत से देखकर
डाल दिया जाता है कूड़ेदान में
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
बेचारी क़िस्मत के व्यवधान में

अब मैं भी कैसी बेतुकी बातें करता हूँ
स्वर्ग कभी मिला है नर्क से
कब आसमाँ धरती से मिलने को आतुर हुआ
कभी प्रेमालाप नहीं किया पाप और पुण्य
न विचार एक हुआ देवता और दानव का।


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