हम चाँद को छूने आए हैं - कविता - अनूप अंबर

फिर चाँद को छूने आए हैं, 
हम चाँद को छूने आए हैं। 

फिर से नवीन जोश भर के, 
अडिग हौसलों को कर के, 
हमने हार न मानी लेकिन, 
हमने नव स्वप्न सजाए है। 

फिर चाँद को छूने आए हैं, 
हम चाँद को छूने आए है। 

हमने मंगल पर फहराया झंडा, 
अब चाँद के स्वप्न सजाए है, 
टूटे ख़्वाबों की बुनियादों पर, 
फिर उम्मीद के महल बनाए हैं। 

फिर चाँद को छूने आए हैं, 
हम चाँद को छूने आए हैं। 

जो बीत गया विसरा कर के, 
अडिग संकल्प उठा कर के, 
सबकी की दुआएँ अर्जित कर, 
भारत का मान बढ़ाए हैं। 

फिर चाँद को छूने आए हैं, 
हम चाँद को छूने आए हैं। 

अनूप अम्बर - फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश)

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