नव ज्ञान रश्मि बिखराऊँ,
निर्बल को सबल बनाऊँ।
जो हार चुके हैं जग में,
पथ भूल चुके हैं मग में।
उत्साह जगा चिंगारी,
अंतस की हर ॲंधियारी।
उनको मंज़िल पहुँचाऊॅं,
नव ज्ञान रश्मि बिखराऊँ।
डरते जो सच कहने से,
अधिकार हेतु लड़ने से।
सामंतों से जो डरकर,
निर्बल रह जाते चुपकर।
उनका संबल बन पाऊँ,
नव ज्ञान रश्मि बिखराऊँ।
इतनी है तुमसे आशा,
हो जाए पूर्ण अभिलाषा।
अब करुणा कर दो माते,
सुचि ज्ञान अमर दो माते।
फिर कीर्तिमान दिखलाऊॅं,
नव ज्ञान रश्मि बिखराऊँ।
सुशील कुमार - बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)