आराध्य प्रभु हे शिव भोले - कविता - गणेश भारद्वाज

आराध्य प्रभु हे शिव भोले,
जगती अंबर तुझ में डोले।
मेरे मन में वास करो तुम,
मेरे सारे पाप हरो तुम।

तुम बिन जग में किसको ध्याऊँ,
कण-कण में बस तुझको पाऊँ।
तुम बिन कौन बड़ा है दाता,
जोड़ूँ जिससे अपना नाता।

भाई, बहना तुम्ही भ्राता,
तुम्ही पिता तुम्ही माता।
तुझ से बढ़कर कुछ न भाता,
यह मन, तेरा ही यश गाता।

शिव व शव में अंतर तुम हो,
ग्रंथों के सब मंत्र तुम हो।
हे शिव शंकर अंतर्यामी,
तुम हो मेरे तन के स्वामी।

तुझसे बढ़कर कौन बड़ा है?
हर जन तेरे चरण पड़ा है।
धर्म शरण में नाम घड़ा है,
जिसको जैसे जान पड़ा है।

तेरे घर की राह बताए,
ख़ुद से जो अनजान बड़ा है।
परमार्थ का पाठ पढ़ाए,
जिसके अर्थ अपार पड़ा है।

भवसागर से पार करो तुम,
तेरे दर पे आन पड़ा हूँ।
दे दो शीतल छाया अपनी,
माया जग में बहुत जला हूँ।

गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos