माँ जैसा कोई नहीं - कविता - प्रिती दूबे

तुम सब कुछ कैसे
जान लेती हो माँ?
बच्चो के दुःख को कैसे पहचान लेती हो माँ?
माँ बच्चो को सुलाकर 
ख़ुद नहीं सोती है,
अपने हर शब्दो में
दुआएँ पिरोती है।
ग़मों से ख़ुशियाँ छान लेती है माँ,
बच्चो के लिए जाने क्या-क्या
बलिदान देती है माँ।
बच्चो के आगे हार मान लेती है माँ,
ख़ुद अनपढ़ होकर भी
हमे जीवन जीने का ज्ञान देती है माँ।
माँ जैसा दुनिया में कोई संत नहीं,
माँ की ममता का कोई अंत नहीं।
पा तुझे सफल हुआ मेरा जनम,
माँ तेरे चरणों में शत शत नमन।

प्रिती दूबे - भदोही (उत्तर प्रदेश)

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