वंदना यादव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)
फूल और हम - कविता - वंदना यादव
रविवार, जुलाई 23, 2023
हम -
पूछ रहे है कलियों से
कब ये तुमको खिलना है, बस कुछ पल की देरी है,
अब किसी से हमको मिलना है।
जल्दी उठो पंखुड़ियाँ खोलो,
अब कुछ न तुम हमसे बोलो।
निशा गई प्रातः है आया, रवि उठ सामने आया,
बहुत देर हुई अब चलना है,
बस कुछ पल की देरी है,
अब किसी से हमको मिलना है॥
फूल -
जब ख़ुशी तुम्हारी आती है तो,
दाँव पर मैं लग जाता हूँ,
मुझको न्यवछावर करते हो तो
अक्सर पाँव तले दब जाता हूँ।
कभी डोली पर कभी अर्थी पर,
तो कभी इमारत सजाने में लगाते हो,
और तो और जब जीत तुम्हारी होती है
तो हार मुझे बनाते हो।
हे मानव! अब मेरे ख़ामोशी की कोई न परीक्षा लो,
अरमान है कुछ दिल के पूरी मेरी इच्छा करो।
मातृभूमि के अस्तित्व में प्राणों को न्यवछावर करने,
चली जो वीरों की टोली
उन हलचल गलियों में तुम मुझको बिछाया करो।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर