फूल और हम - कविता - वंदना यादव

हम - 
पूछ रहे है कलियों से
कब ये तुमको खिलना है, बस कुछ पल की देरी है,
अब किसी से हमको मिलना है। 
जल्दी उठो पंखुड़ियाँ खोलो,
अब कुछ न तुम हमसे बोलो।
निशा गई प्रातः है आया, रवि उठ सामने आया,
बहुत देर हुई अब चलना है,
बस कुछ पल की देरी है,
अब किसी से हमको मिलना है॥

फूल -
जब ख़ुशी तुम्हारी आती है तो,
दाँव पर मैं लग जाता हूँ,
मुझको न्यवछावर करते हो तो
अक्सर पाँव तले दब जाता हूँ।
कभी डोली पर कभी अर्थी पर,
तो कभी इमारत सजाने में लगाते हो,
और तो और जब जीत तुम्हारी होती है
तो हार मुझे बनाते हो।
हे मानव! अब मेरे ख़ामोशी की कोई न परीक्षा लो,
अरमान है कुछ दिल के पूरी मेरी इच्छा करो।
मातृभूमि के अस्तित्व में प्राणों को न्यवछावर करने,
चली जो वीरों की टोली
उन हलचल गलियों में तुम मुझको बिछाया करो।

वंदना यादव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos