अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती : 2122 2122 212
भाई से भाई बेगाना हो गया,
बंद आना और जाना हो गया।
ख़ुद से ज़्यादा था यक़ीं जिस हाथ का,
हाथ उससे ही छुड़ाना हो गया।
साथ में ख़ुशियाँ मनाईं थी कभी,
अब अकेले ग़म मनाना हो गया।
जब से बेघर मैं हुआ मेरा यहाँ,
आसमाँ ही आशियाना हो गया।
कब तलक उसको मनाऊँ मैं भला,
रोज़ जिसका रूठ जाना हो गया।
अब बसर मेरी यहाँ होगी नहीं,
रोटियाँ दुश्वार खाना हो गया।
देखकर रंगत, अदाएँ, शोख़ियाँ,
हर बशर तेरा दिवाना हो गया।
याद कर लीं हिज्र की बातें सभी,
दर्द से दिल का दुखाना हो गया।
रास आती ही नहीं उल्फ़त इसे,
प्यार का दुश्मन ज़माना हो गया।
रज्जन राजा - कानपुर (उत्तर प्रदेश)