वज्र सा तुम प्रहार बनो,
विघ्न हर्ता तलवार बनो।
लक्ष्य को निहारो हर क्षण,
चाहे रण लड़ना पड़े भीषण॥
भले काल विकराल विषम हो,
कलह, विघ्न पर जब संयम हो।
साहसी चलते मनोबल के सहारे,
सुख दुःख तो हैं दो किनारे॥
शूरवीर निहारते सदा विजय,
शीश कफ़न बाँध कर लेते तय।
अंतिम साँस तक डिगते प्रण से,
करते संघर्ष जीवन रण से॥
संघर्ष देख कायरों सा तुम भागोगे,
यश कीर्ति की आभा कहाँ पाओगे?
उठो, लक्ष्य भेदो तुम हे शूरवीर,
दिखाओ पराक्रम आत्मबल से, हे रणधीर॥
राजेन्द्र कुमार मंडल - सुपौल (बिहार)