दर्द - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'

कुछ दर्द बयाँ हो न पाए, 
ज़ुबाँ ख़ामोश पर 
हम आँसुओं को रोक न पाए, 
हवाएँ वही फ़िज़ाएँ वही 
पर तेरे चाँद से चेहरे को 
हम देख न पाए, 
एक रात ख़्वाबों में 
तुझसे मुलाक़ात हुई 
पर ख़्वाब टूटे 
और हम आँसुओं के मोतियों को 
आज तक समेट न पाए। 


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