शंकर - कविता - हर्ष शर्मा

सूक्ष्म से सूक्ष्म शंकर, 
विशाल से विराट शंकर, 
आकार शंकर, 
साकार शंकर, 
विश्व में निरंकार शंकर, 
घुँघरू की झंकार है शंकर, 
शब्दो का ओंकार है शंकर, 
गौरा का शृंगार है शंकर, 
जीवन के आर शंकर, 
मृत्यु के पार शंकर, 
जाने कितने प्रकार के शंकर, 
मेघों की गर्जन भी शंकर, 
संतो की अर्जन भी शंकर, 
जीवनमध्य का घर्षण शंकर, 
सुरों की सरगम में शंकर, 
डमरू की डम-डम में शंकर, 
परशुधारी राम है शंकर, 
शृष्टि का आरंभ है शंकर, 
जीवन का प्रारंभ है शंकर, 
लंकापति का दंभ है शंकर, 
विश्व का आरंभ है शंकर, 
अग्नि की पीतता में शंकर, 
जल की शीतता में शंकर, 
सूर्य का तेज़ शंकर, 
चंद्र का प्रकाश शंकर, 
काल की ध्वंसी शंकर, 
कान्हा की बंसी भी शंकर, 
कंकर-कंकर बैठा शंकर, 
धनुष की टंकार में शंकर, 
और क्या कहा था, 
क्या है शंकर? 
और कहाँ है शंकर? 
ले देख, मुझमें शंकर, 
तुझमें शंकर, 
इसमें शंकर, 
उसमें शंकर, 
आकाश में शंकर, 
पाताल में शंकर, 
जीवन के उद्घोष में शंकर, 
मृत्यु के आघोष में शंकर, 
धरा पे शंकर, 
वराह पे शंकर, 
डाल पे शंकर, 
पात पे शंकर, 
तीन लोक कहे शंकर-शंकर, 
मेरे आगे शंकर, 
मेरे पीछे शंकर, 
यहाँ भी शंकर, 
वहाँ भी शंकर, 
अब देखने वाले तु देख, 
कहाँ चाहिए तुझे शंकर, 
मैं जहाँ भी देखूँ, 
मुझे दिखता है; 
मेरा शंकर मेरा शंकर, 
मेरा शंकर मेरा शंकर।

हर्ष शर्मा - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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