तुम उठो हिन्द के रणधीरों,
रणभेरी का न सुनो राग।
सामर्थ्य विजेता बनो स्वयं,
क्रोधानल का तुम करो त्याग।
यह नहीं हस्तिनापुर, चौसर,
न इन्द्रप्रस्थ का शीशमहल।
यह नहीं मूकता उस युग की,
न युग युगांत का कौतूहल।
यदि मौन रहे बन पुष्प यहाँ,
अलि ही ले जाएगा पराग।
तुम उठो हिन्द के रणधीरों,
रणभेरी का न सुनो राग।
यह वर्तमान का है भारत,
हो रहे यहाँ नित चीरहरण।
धृतराष्ट्र, भीष्म सम मौन नहीं,
बन व्याघ्र शत्रु का करो मरण।
यदि लुटी अस्मिता नारी की,
तुम स्वयं बनोगे यहाँ दाग़।
तुम उठो हिन्द के रणधीरों,
रणभेरी का न सुनो राग।
न रहे शेष इस नव युग में,
अब कोई दुःशासन, दुर्योधन।
तुम उठो पांडवों सम योद्धा,
अरि रक्त से कर लो तुम शोधन।
यदि नहीं जागृत हुए अभी,
तो सदा डसेंगे धरा नाग।
तुम उठो हिन्द के रणधीरों,
रणभेरी का न सुनो राग।
राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)