संदेश
हम चाँद को छूने आए हैं - कविता - अनूप अंबर
फिर चाँद को छूने आए हैं, हम चाँद को छूने आए हैं। फिर से नवीन जोश भर के, अडिग हौसलों को कर के, हमने हार न मानी लेकिन, हमने नव स्वप…
भाई से भाई बेगाना हो गया - ग़ज़ल - रज्जन राजा
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 212 भाई से भाई बेगाना हो गया, बंद आना और जाना हो गया। ख़ुद से ज़्यादा था यक़ीं जिस …
अपील - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
उसका अपील छल की स्याही से लिखा गया है जबकि मेरा अपील पीड़ा की आँसू से उसका अपील धूर्तता के गिनियों के साथ पेश किया जाता है मेरा अपील या…
माँ जैसा कोई नहीं - कविता - प्रिती दूबे
तुम सब कुछ कैसे जान लेती हो माँ? बच्चो के दुःख को कैसे पहचान लेती हो माँ? माँ बच्चो को सुलाकर ख़ुद नहीं सोती है, अपने हर शब्दो में दुआ…
दर्द - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
कुछ दर्द बयाँ हो न पाए, ज़ुबाँ ख़ामोश पर हम आँसुओं को रोक न पाए, हवाएँ वही फ़िज़ाएँ वही पर तेरे चाँद से चेहरे को हम देख न पाए, एक र…
सावन और माँ का आँगन - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
मुस्कान खिली ऋतु पावस मुख, आनंद मुदित मधु श्रावण है। फुलझड़ियाँ बरखा हर्षित मन, नीड भरा माँ का आँगन है। महके ख़ुशबू बरसात घड़ी, भारत …
हे शूरवीर - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
वज्र सा तुम प्रहार बनो, विघ्न हर्ता तलवार बनो। लक्ष्य को निहारो हर क्षण, चाहे रण लड़ना पड़े भीषण॥ भले काल विकराल विषम हो, कलह, वि…
सुबह - कविता - संजय राजभर 'समित'
सूरज का नियति समय पर उदय होना सुबह नहीं है यह एक प्राकृतिक चक्र है और कुछ नहीं, सुबह मानवतावादी होना और अच्छे संस्कारों का बीजारोपण…
फ़र्क़ - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
मायने रखता है- उलझे धागे को सुलझाने वाले का जीवन, कितना सुलझा है? मायने रखता है– उसके जीवन का अनवरत श्रम, किसके तन पर दिखता है? मायने …
बार-बार यह सावन आए - कविता - राजेश 'राज'
करें गगन में मेघ गर्जन, करे चपला घनघोर नर्तन। हुए पागल उन्मुक्त बादल, घुमड़ रहे ले जल ही जल। यह विराट दृश्य मन भाए, बार-बार यह सा…
स्थायित्व - कविता - श्याम नन्दन पाण्डेय
ब्रह्मांड का हर कण दूसरे कण को आकर्षित अथवा प्रतिकर्षित करता रहता है सतत… ताप, दाब और सम्बेदनाओं से प्रभावित टूटता-जुड़ता हुआ नए रूप अथ…
सावन में शिव अर्चना - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
सावन में शिव अर्चना सोम दिवस अति नेम। अवढर दानी चाहते शुद्ध सरल शुचि प्रेम॥ शुद्ध सरल शुचि प्रेम दूध घी चन्दन वारो। जप लो नमः शिवाय…
शंकर - कविता - हर्ष शर्मा
सूक्ष्म से सूक्ष्म शंकर, विशाल से विराट शंकर, आकार शंकर, साकार शंकर, विश्व में निरंकार शंकर, घुँघरू की झंकार है शंकर, शब्दो का ओ…
बरसा ऋतु मन भावन - मनहरण घनाक्षरी छंद - राहुल राज
बरसा की ऋतु मन भावन सुभावन है, तन मन डाले संग उठत उमंग हैं। हरियाली ख़ुशहाली लाई ऋतु मतवाली, ताली बजा बजा नाचे सब एक संग हैं। ख़ुश ह…
चेतक - कविता - अमित तिवारी 'बेचन'
नाम था उसका चेतक, था वो बड़ा मतवाला। घोड़ों में कहते उसे, महाराणा का भाला॥ हवा से अक्सर बातें करता, जैसे हो तुफ़ानी। पल में महारा…
समुद्र मंथन - कविता - पायल मीना
देव और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन रचाया था, क्षीरसागर के मध्य में मंदरांचल पर्वत को लाया था। वासुकी नाग को बनाकर जेवरी शुभारंभ मंथन …
तू तो मैं में, मैं में तू तू - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
जब से तेरी लगन लगी है कुछ भी और नहीं भाता। भाना तो अब दूर जगत से टूट गया झूठा नाता॥ रोम-रोम में हुलक मारती पुलक न जाने क्या कर दे। …
एक अज्ञात चिंता - कविता - प्रवीन 'पथिक'
जब भी तुम्हे ढूॅंढ़ने की कोशिश करता हूॅं! भूल जाता हूॅं, ख़ुद में ही। एक अज्ञात चिंता, मन पर हावी होने लगती। इस संसार से, दूर जाना चाह…
ये मौन अधर की बातें - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी
ये मौन अधर की बातें, केवल नैना कह पाते हैं। नैना सब कुछ सुन लेते हैं, मुख पर चैना रह जाते हैं। ख़्वाब सुहावन पावन होकर, अरज के साथ प्रव…
माँ की याद - कविता - मेहा अनमोल दुबे
नियम, जपतप में लगे हुए, दिव्य शांत स्वरूपा, मेहा बन फुलों पर सो गई या मौन में सदा के लिए तल्लीन हो गई, दृष्टिकोण में तो सब जगह हो गई…
ऋतुओं की रानी वर्षा ऋतु - कविता - राघवेंद्र सिंह
मेघ चले हैं बनकर वाहक, वसुधा प्यास बुझाने को। मृदुल स्वप्न ने दिया निमंत्रण, वर्षा ऋतु के आने को। हरी भरी वह संध्या कहती, आने वाली नई …
नया आँचल नई मुस्कान - कविता - विजय कुमार सिन्हा
कलाइयों में भरी हुई चूड़ियाँ पाँवों में पाज़ेब ललाट पर बड़ी सी बिंदिया माँग में सिंदूर बदन पे भरे हुए आभूषण माँ-पापा के द्वारा पसंद…
कर्मों का फल - कविता - डॉ॰ कंचन जैन 'स्वर्णा'
समंदर सी गहराई लेकर, चल मन में। मगर समंदर सा खारापन नहीं। चला क़लम बेशक रफ़्तार से, मगर ठहर, हर शब्द को पढ़। बड़ा क़दम तेज़ी से हरेक,…
मेरे सपने लौटा दो - कविता - रूशदा नाज़
वो बचपन था ढेरों सपने सजाए थे इन आँखों ने साकार करेंगें एक दिन, हम होगें कामयाब एक दिन हर्षोल्लास के संग गाते थे गीत वक़्त के साथ साथ ह…
तुझे क्या कहूँ? - कविता - मुस्ताक अली
तू ही बता तुझे क्या कहूँ? गुलशन की बहार कहूँ ख़ुशियों का संसार कहूँ ज़िंदगी का सार कहूँ या मेरे दिल में बसा बेपनाह प्यार कहूँ? तू ही बता…
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