समुद्र मंथन - कविता - पायल मीना

देव और दानवों ने मिलकर
समुद्र मंथन रचाया था,
क्षीरसागर के मध्य में 
मंदरांचल पर्वत को लाया था।
वासुकी नाग को बनाकर जेवरी
शुभारंभ मंथन का करवाया था,
मंथन के मध्य से निकलकर
कालकूट विष आया था।
सारी सृष्टि लगी थी जलने
देवों का तेज़ भी कुम्हलाया था,
जटाजूट महाकाल शिव ने आकर तब
कालकूट विष को ख़ुद में उतारा था।
कंठ से नीचे जाने ना दिया जब
नीलकंठ नाम को पाया था,
भांति-भांति के उपहारों को
देव-दानवों ने अपनाया था।
अन्ततः अमृत कलश है जब आया
वैद्य धन्वंतरि द्वारा उसे लाया था,
कौन करेगा ग्रहण सर्वप्रथम
प्रश्न ये सामने आया था।
देव और दानवों में फिर से
युद्ध से छिड़ने आया था,
विष्णु जी तब बने मोहिनी
दानवों को उन्होंने रिझाया था।
देवताओं को अमृतपान करवाकर
उनको अमर बनाया था,
समुद्र मंथन के कठिन कार्य को
प्रभु ने सरल बनाया था॥

पायल मीना - बाराँ (राजस्थान)

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