कर्मों का फल - कविता - डॉ॰ कंचन जैन 'स्वर्णा'

समंदर सी गहराई लेकर, चल मन में।
मगर 
समंदर सा खारापन नहीं। 
चला क़लम बेशक रफ़्तार से, 
मगर ठहर, 
हर शब्द को पढ़। 
बड़ा क़दम तेज़ी से हरेक, 
मगर 
किसी की अच्छाइयों को मत कुचल। 
दिया है,
वरदान उस ईश्वर ने बुद्धि का प्रत्येक को।
मगर विवेक भी साथ दिया।
ना बन,
कारण किसी के दुख का, 
क्योंकि आज तक उस ईश्वर ने,
"कर्मों का फल" सबको दिया। 

डॉ॰ कंचन जैन 'स्वर्णा' - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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