मेरे सपने लौटा दो - कविता - रूशदा नाज़

वो बचपन था
ढेरों सपने सजाए थे इन आँखों ने
साकार करेंगें एक दिन,
हम होगें कामयाब एक दिन
हर्षोल्लास के संग गाते थे गीत
वक़्त के साथ साथ हम भी चलते रहें...
फिर आया एक दिन
हम बेबस हो गए;
इसलिए नहीं कि ख़ुद से हार मान ली
बात इतनी सी है कि इच्छाएँ मार दी अपनों की ख़ातिर
मेरे सहेजे सपने लौटा दो
देखे गए अरमान लौटा दो
मेरी उम्मीदें लौटा दो 
अश्रु बहकर धरती पर गिरते है
आत्मविश्वास लेकर उठते हैं
अभी हारे नहीं है
थके नहीं है
रूके नहीं है
हम चलेंगे
हम बढ़ेंगे 
आकाश छू लेंगे एक दिन
मेरे आह्वान सुन लो
अपने आशीर्वाद दे दो
मेरे सपने लौटा दो
मेरे सपने लौटा दो।


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