संदेश
नारी - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नवदुर्गा नवशक्ति है, सुता वधू प्रिय अम्ब। लज्जा श्रद्धा पतिव्रता, नारी जग अवलम्ब॥ करुणा ममता हिय दया, क्षमा प्रेम आगार। प्रतिमा नित…
होली का त्योहार मुबारक - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
होलियारों की शान मुबारक, होली वाली तान मुबारक। रंग बिरंगी सबको भाती रंगों की दुकान मुबारक। सभी अधूरी आस मुबारक, सरहज साली सास मुबारक। …
होली आई - कविता - आशाराम मीणा
लंबी रातें छोटी हो गई मौसम ने ली अँगड़ाई, शरद ऋतु ने ली रवानी बसंत की आहट आई। सतरंगी मौसम में देखो होली आई होली आई॥ सुनहरी फ़सलें खेतों…
वृंदावन में होरी आई होरी आई रेें - गीत - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
वृंदावन में होरी आई होरी आई रे होरी आई रे अरे होरी आई रे... वृंदावन में होरी आई होरी आई रे। ग्वाल बाल संग कान्हा गोकुल में आवेंगें सखी…
विरह वेदना - कविता - राजेश 'राज'
कैसे लिख पाऊँ मैं विरह वेदना? ख़ामोशियाँ बेशुमार कुछ लिखने की नाकाम कोशिशें अंतर्मन में सुलगती विरह अग्नि से उठता अदृश्य धुआँ मीलों न क…
कवि क्या है? - कविता - ईशांत त्रिपाठी
मैं कवि नहीं, काव्य हूँ, शब्द रचना भाष्य हूँ। जगत की समृद्धि का मैं ही सदा आधार हूँ। मैं लक्ष्य नहीं, मार्ग हूँ, जीवंत भाव प्रवाह हूँ।…
कवि! तुम क्यों कविता करते हो? - गीत - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
कवि! तुम क्यों कविता करते हो? आख़िर तुम ने पूछ लिया ना! प्रश्न आपने पूछा ही है, तो फिर उत्तर देना होगा। सच पूछो तो इस युग के हर, बेज़ुबा…
आज कुछ लिखने का मन है - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन तक़ती : 2122 2122 आज कुछ लिखने का मन है, प्रीत का जागा बचपन है। मिलन दिल को छूने आ रहा, विरह कर रहा पला…
पहले हर समझौता करना पड़ता है - ग़ज़ल - सालिब चन्दियानवी
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा तक़ती : 22 22 22 22 22 2 पहले हर समझौता करना पड़ता है, तब रिश्तों को पक्का करना पड़ता है।…
मुझमें जीने लगे हो तुम - कविता - रेणु अग्रवाल
मुझमें जीने लगे हो तुम ऐसे कि जैसे मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में सुख-दुख को आपस में बाँट जीवंत हो उठते हैं पात्र। मुझमें जीने लगे हो …
नहीं ये दिल सम्भलता है - गीत - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
मिलन को आपसे प्रियवर, बहुत ही मन मचलता है। बहुत रोका मचलने को, नहीं ये दिल सम्भलता है॥ मिलन के दृश्य अब अपनें, स्वप्न में आ भटकते हैं…
चिट्ठियाँ - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
बीते लम्हों की यादों वाली चिट्ठियाँ, इश्क़ में अटल इरादों वाली चिट्ठियाँ, चिंता और अवसादों वाली चिट्ठियाँ, अंखियन सावन-भादों वाली चिट्ठ…
प्रेम मिलन परिणीत हिय - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
अनुबन्धन मधुमास प्रिय, कहाँ छिपे चितचोर। बासन्ती मधुरागमन, प्रेम नृत्य प्रिय मोर॥ कोमल प्रिय ललिता लता, मैं कुसुमित नवप्रीत। नव वसन…
कल पड़े जाना भले ही आज जाएँ जान से - ग़ज़ल - धर्वेन्द्र सिंह 'बेदार'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन तक़ती : 2122 2122 2122 212 कल पड़े जाना भले ही आज जाएँ जान से, हम जिए हैं हम जिएँगे हम मर…
वक़्त का खेल - कविता - संजय राजभर 'समित'
जर्जर खण्डहरें यश गाथा को अपनी प्राचीर में समेटे निःशब्द खड़े हैं, परिवर्तन संसार का नियम है राजा से रंक रंक से राजा सब परिस्थितियो…
सच को झूठा मत कहना - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
सच अगर तुम कह न सको तो सच को झूठा मत कहना, दीन धर्म को पीछे रखकर पाप कर्म तुम मत करना। सच्चाई की ख़ातिर कितने मिट गए सीना तान के, जला …
थोड़ी सी विनम्रता - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
निर्मल शब्द, मेरे प्रिय के कंचन तन को, सुंदर मन को न बनने देना पत्थर सा सख़्त न होने देना व्यथित और उदास न खोने देना कोई गंध, स्वप्न न …
कुरुक्षेत्र भी फूट-फूट रोया है - कविता - मयंक द्विवेदी
समय रेत के साँचों पर शर शैय्या के बाणों पर चुभते तीरों की नोकों पर एक युगपुरुष सोया है देख-देख उसको भी करूक्षेत्र भी फूट-फूट रोया है। …
सच्चे प्यार का रिश्ता - कहानी - मानव सिंह राणा 'सुओम'
आज राजकुमार सुबह से ही बहुत ख़ुश था। आज वो पिछले पाँच वर्ष बाद अपने घर जा रहा था। सभी पैकिंग तो कल ही कर दी थी। न्यूयॉर्क से उसकी फ्लाइ…
रिश्तों की डोर - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जन्म से मृत्यु तक, इंसान बँधा है रिश्तों की डोर में। रिश्तों की डोर बहुआयामी होती है। मात-पिता, भाई-बहन, दादा दादी इन रिश्तों को ख़ून …
ख़्वाहिश - कविता - सैयद इंतज़ार अहमद
अब मुझे शोहरत की लालच भी नहीं, है मुझे दौलत से निस्बत भी नहीं, चाहता हूँ, जी लूँ अब यूँ ज़िंदगी, बनके एक गुमनाम सा बस आदमी। मैंने देखे …
अर्पित करना चाहूँ - कविता - इन्द्र प्रसाद
सूरज की किरणें जब आ करके जगाती हैं। कलियाँ प्रतिउत्तर में खिलकर मुस्काती हैं॥ ये मौन दृश्य सारा दिल को छू लेता है। उस जगतनियंता की अन…
कब मिलोगे बोलिए जी - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन तक़ती : 2122 2122 कब मिलोगे बोलिए जी, चुप ज़ुबाँ को खोलिए जी। याद में छुप कर बहुत दिन, अब बहुत दिन रो लिए ज…
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