ओ हंसिनी - कविता - सुनील शर्मा 'सारथी'

तेरे रूप का क्या बखान करूँ, तुम सुंदरता की मुरत हो,
मृगनयनी सी आँखो वाली, चंचल और ख़ूबसूरत हो,

गुलाब पंखुड़ी जैसे अधर और नेत्र तुम्हारे सजल है,
चेहरा तेरा ऐसा मानो जैसे कोई ख़ूबसूरत सी ग़ज़ल है।

बड़ी फ़ुर्सत से बनाया है ऊपरवाले ने तेरा ये सजीला रूप,
बग़ैर मेकअप के चमक ऐसी, जैसे जेठ की चमकती धूप।

सुरज का तेज़ और चंद्रमा की शीतलता का संगम हो तुम,
राजनंदिनी की शान तुम्हारी और सीरत से अनुपम हो तुम।

सुनील शर्मा 'सारथी' - जालना (महाराष्ट्र)

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